Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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। वचन कहना.रखना बैठना आदि क्रियाओंमें कारण वाक् पाणि पाद पायु और उपस्थ ये पांच कमैंद्रिय भी मानी गयी हैं इसलिये स्पर्शन आदि इंद्रियों के साथ वाक् पाणि आदि कर्मेंद्रियोंका भी उल्लेख करना चाहिये ? सो ठीक नहीं। यहांपर ज्ञान दर्शन स्वरूप उपयोगका प्रकरण चल रहा है इसलिये जो इंद्रियां ज्ञान दर्शन स्वरूप उपयोगमें कारण हैं उन्हींका यहां उल्लेख किया जा सकता है । स्पर्शन आदि इंद्रियां उपयोगमें कारण हैं इसलिये उन्हींका यहां ग्रहण है वाक् पाणि आदि इंद्रियां उपयोगमें 4 कारण नहीं इसलिये उनका यहां ग्रहण नहीं है । इसलिये अप्रकृत होनेसे वाक् आदि इंद्रियोंका यहां उल्लेख नहीं किया गया। तथा और भी यह बात है कि
जो पदार्थ ज्ञान और दर्शनस्वरूप उपयोगमें कारण हो उसीका नाम इंद्रिय माना है । स्पर्शन आदि इंद्रियां उपयोगमें कारण हैं इसलिये उन्हें इंद्रिय मानना युक्त है। वाक पाणि आदि उपयोगमें कारण नहीं इसलिये उन्हें इंद्रिय नहीं कहा जा सकता यदि यहाँपर 'जो क्रियाकी साधन हों वे इंद्रिय है यह इंद्रिय सामान्यका लक्षण किया जायगा तो यद्यपि बोलना आदि क्रियाओंकी कारण होनेसे
वाक् आदि इंद्रियां कहे जायगे परंतु क्रियाके साधन तो मस्तक आदि सब ही अंग उपांग है । सबोंको हूँ इंद्रिय कहना पडेगा फिर किसको इंद्रिय कहना किसको न कहना अथवा वाक् पाणि आदि पांचको है कमेद्रिय कहना औरोंको न कहना यह अवस्था ही न बन सकेगी इसलिये 'जो क्रियाकी साधन हों है वे इंद्रिय हैं यह इंद्रिय सामान्यका लक्षण न मानकर 'जो उपयोगमें कारण हो वे इंद्रिय हैं। यही इंद्रिय
का लक्षण मानना चाहिये । उपयोगका कारण स्पर्शन आदि ही है इसलिये वे ही इंद्रिय कही जा ६५. ७ सकती हैं वाक् पाणि आदि उसके साधन नहीं इसलिये उन्हें इंद्रिय नहीं कहा जा सकता तथा इस: