Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
CHECEMBERRORECAMERALDAADIS
___ पूर्वमें ग्रहण किये हुए परमाणु जिस समयप्रबद्धरूप स्कंधमें हों उसे गृहीत कहते हैं। जिस समयप्रबद्धमें ऐसे परमाणु हों कि जिनका जीवने पहिले कभी ग्रहण न किया हो उसे अग्रहीत कहते हैं। जिस है समयप्रबद्धमें दोनों प्रकारके परमाणु हों उसे मिश्र कहते हैं। यहाँपर यह शंका नहीं करनी चाहिये । कि जब अनादिकालसे कर्मपुद्गलोंको जीव ग्रहण करता चला आरहा है तब उसके द्वारा अगृहीत परमाणुओंका लोकमें होना असंभव है । क्योंकि अगृहीत परमाणुओंको भी लोकमें अनंतानंत माना , गया है। संपूर्ण जीवराशीका समयप्रबद्ध के प्रमाणसे गुणा करनेपर जो लब्ध आवे उसका अतीतकालके 4 समस्त समयप्रमाणसे गुणा करनेपर जो लब्ध आवे उससे भी अनंतगुणा पुद्गलद्रव्य है।। ___अगृहीतग्रहण गृहीतग्रहण और मिश्रग्रहणके भेदसे नोकर्मद्रव्यपरिवर्तनका काल तीन प्रकारका माना गया है। गोम्मटसारजीकी दोनों संस्कृत टीका वा सम्यग्ज्ञानचंद्रिका नामकी भाषा टीकामें इस . विषयको अच्छीतरह स्पष्ट किया है। थोडासा यंत्रपूर्वक खुलासा उसका इसप्रकार है
द्रव्यपरिवर्तनका यंत्र।
०.४|०.४.०१/०.४० ०४|००१ xxxx.xxxxxx.xx१ xxxxxxxxxxxx ११४|१४|११०११४|११४|११०
इस यंत्रम शून्यसे अगृहीत (x) इस हंसपदके चिह्नसे मिश्र और एकके अंकसे गृहीत समझना चाहिए ॐ तथा दो बार लिखनेसे अनंतबार समझ लेना चाहिए। इस यंत्रसे यह बात आसानीसे जान ली जाती
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