Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अम्मा
ब०रा० भाषा
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स्वरूप मानने पर भी किसीप्रकार आत्माकी नास्ति नहीं कही जा सकती तब आत्मा तत्व है' यह हमारा पक्ष निश्शंक रूपसे सिद्ध है। यदि यहाँपर विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध शंका करै कि
संतानादिति चेन्न तस्य संवृतिसत्त्वाद् द्रव्यसत्त्वे वा संज्ञाभेद मात्रं ॥२१॥ संतान नामका एक पदार्थ है । उसे एक और अनेकक्षणपर्यंत ठहरनेवाला माना है वही इंद्रिय तजनित | Bा ज्ञान आत्म स्वभावके स्थानोंका ज्ञान और घट पट आदि वा रूप रस आदिकी प्रतिपचिका आधार 5|| मान लिया जायगा आत्मा पदार्थके माननेकी कोई आवश्यकता नहीं ? सो ठीक नहीं । जो पदार्थ | || वास्तविक न होकर कल्पित होता है उससे विशेषकी प्रतीति नहीं होती । संतान पदार्थको वास्तविक ||
न मान विज्ञानाद्वैतवादियोंने कल्पितमाना है इसलिये वह आत्मस्वभावोंके स्थानज्ञान आदि विशेष प्रतीतियोंका आधार नहीं हो सकता। यदि यहांपर यह कहा जाय कि____ हम संतानको कल्पित पदार्थ न मानकर वास्तविक और द्रव्यस्वरूप पदार्थ मानेंगे। ऐसा माननेसे |
वह विशेष प्रतीतियोंका आश्रय बन सकता है कोई दोष नहीं ? इसका उत्तर यह है कि जब उसे वास्त|| विक और द्रव्यस्वरूप ही मान लिया तब संतान कहो तो और आत्मा कहो तो नाममात्रका ही भेद
हुआ अर्थमें कोई भेद नहीं हुआ इसलिये फिर उसे आत्मा ही कहना ठीक है । इसगीतसे आत्माकी || सिद्धि निरावाध है । इसप्रकार विज्ञानाद्वैतवादीने अकारण और अप्रत्यक्षत्व हेतुओंके बलपर जो| | आत्माका नास्तित्व सिद्ध करना चाहा था दोनों हेतुओंको सदोष बताकर उसका अच्छीतरह खंडन || कर दिया गया तथा आत्माका अस्तित्व भी खुलासा रूपसे सिद्ध कर दिया गया। अब ऊपर जो यह कहा गया था कि 'आत्माके रहते भी उपयोग उसका लक्षण नहीं हो सकता है क्योंकि वह अनवस्थान क्षणिक है उसपर कुछ विचार किया जाता है
SURESUBSCAMBASSASR