Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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कर्मों के जालमें फंसकर संसारमें भ्रमण करनेवाला यह जीव जिससमय बंध्यास्त्रीकी पर्याय धारण ||
अध्याय | करता है उससमय यह बंध्या कहा जाता है । फिर अपने कर्मानुसार जिससमय यह पुत्रवतीस्त्रीकी पर्याय है। धारण करता है उससमय वही पुत्रवतीस्त्री कहा जाता है। यहांपर बंध्या और पुत्रवतीस्रीदोनों पर्यायोंको II धारण करनेवाला एक ही जीव है इसलिये एक ही जीवके संबंधसे जो बंध्यात्री थी वही यह पुत्रवती स्त्री है यह यहां प्रत्यभिज्ञान होता है। दोनों पर्यायोंमें जीव एक ही है इसलिये पुत्रवतीस्त्रीका पुत्र भी बंध्याका पुत्र कहा जा सकता है इसलिये बंध्याके पुत्रका अस्तित्व संसारके अंदर मौजूद है। तथा वह 3 रज वीर्य आदि कारणों से उत्पन्न होता है इसलिये वह सकारणक भी है इसरीतिसे जब बंध्याके पुत्रका
आस्तित्व और सकारणव सिद्ध है तब नास्तित्व और अकारणत्वरूप साध्य साधनरूप धर्मके अभावसे | है वह आत्माकी नास्तित्व सिद्धिमें दृष्टांत नहीं हो सकता। इसीप्रकार-- ____ कर्मोंके जालमें फसकर अनेक योनियोंमें भ्रमण करनेपर जिससमय यह जीव शशाकी पर्याय धारण करता है उससमय शशा कहा जाता है। फिर अपने कर्मानुसार जिससमय वह गौकी पर्याय || धारण करता है उससमय वही गौ कहा जाता है । यहांपर शशा और गौ दोनों पर्यायोंका धारण 15
करनेवाला एक ही जीव है.। इसलिये एक जीवके संबंधसे जो शशा था वही गौ है यह प्रत्यज्ञान यहां 15 Sil होता है। दोनों पर्यायोंका धारकजीव एकही है इसलिये गौके सींग भी शशाके सींग कहे जा सकते हैं|
इसप्रकार शशविषाणका अस्तित्व संसारके अंदर मोजूद है तथा उसकी उत्पत्ति गायके द्वारा खाये॥ गये आहारआदिसे होती है इसलिये वह सकारणक भी है । इसरीतिसे जब शशविषाणका आस्तित्व और सकारणत्व संसारमें सिद्ध है तब नास्तित्व और अकारणत्वरूप साध्य साधनके अभावसे आत्मा
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