Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
___'मेढककी शिखाके समान' यह जो आत्माकी नास्तित्वसिद्धिमें दृष्टांत दिया गया है उसमें साध्य • नास्तित्व और साधन-अकारणत्व, ये दोनों नहीं रहते इसलिये उपयुक्त दृष्टांत साध्य साधनसे रहित 14 है और वह इस प्रकार है--
अनेक प्रकारके कर्मों के बंधके आधीन होकर नाना योनियोंमें भ्रमणकर जिससमय यह नित्य , अविनाशी जीव मेढक पर्याय धारण करता है उससमय मेढक कहा जाता है फिर वही जीव अपने हूँ है कर्मानुसार युवतिस्त्रीकी पर्याय जब धारण करता है उससमय युवाति कहा जाता है, यहांपर मेढक और है
युवतित्री दोनों पर्यायोंका धारण करनेवाला एक ही जीव है इसलिये एक जीवके संबंधसे वहां जो मेंढक था वही यह शिखंडक (लंबी चोटीको धारण करनेवाला युवतिके शरीरका धारक जीव) है ऐसा
प्रत्यभिज्ञान ( सादृश्य ज्ञान होता है इसरीतिसे एक जीवके संबंधके आधीन प्रत्यभिज्ञानबलसे मंडूक ६ शिखंडकी सिद्धि हो जानेपर उसका अस्तित्व संसारके अंदर है । तथा पुद्गलको अनादि अनंत परिइणाम स्वरूप मानना है इसलिये युवात के द्वारा खाया गया आहार जिससमय केशवरूप परिणत हो छ हूँ जाता है उससमय उससे युवातकी चोटीकी उत्पचि होती है इसरीतिसे मंडूकशिखंडकी उत्पचिमें युवति ई एं द्वारा खाया गया आहार आदि कारण होनेसे वह सकारणक भी है । इसप्रकार मंडूक शिखंडका 1 अस्तित्व और सकारणत्व सिद्ध हो जानेसे उसमें नास्तित्व और अकारणवरूप साध्य साधन धर्मोंका
अभाव हो गया अतः आत्माके नास्तित्व सिद्ध करनेमें मंडूक शिखंड दृष्टांत नहीं हो सकता इसीप्रकार ६ वंध्यापुत्र और शशविषाण आदिमें भी अस्तित्व और सकारणत्वकीसिद्धि होनेसे आत्माके नास्तित्व सिद्ध
करनेमें वे भी दृष्टांत नहीं हो सकते । उनका अस्तित्व और सकारणत्व इसप्रकार समझ लेना चाहिये
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