Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा
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ज्ञानस्वरूप आत्मा तो आईत सिद्धांतमें भी माना गया है इसलिये वहांपर भी आत्माका ज्ञानस्वरूपसे परिणमन नहीं बन सकता, विज्ञानवादीके ही मतमें यह दोष क्यों दिया गया ? सो ठीक नहीं। जैन| सिद्धांतमें आत्माकी अकेली विज्ञान ही पर्याय नहीं मानी गई दर्शन सुख आदि भी पर्यायें स्वीकार की | गई हैं। जिससमय विज्ञान पर्यायकी विवक्षा की जायगी उससमय आत्मा विज्ञानस्वरूप है और जिस समय उससे भिन्न किसी पर्यायकी विवक्षा की जायगी उससमय उस पर्यायस्वरूप है इसरीतिसे कथंचित् | तत्स्वरूप और कथंचित् अतत्स्वरूप आत्मा पदार्थके माननेसे उसका परिणमन होना अबाधित है क्योंकि हूँ अनेक पर्यायस्वरूप आत्माको माननेपर कुछ न कुछ उसकी पर्याय सदा पलटती माननी ही होगी
अन्यथा वह अनेक पर्यायस्वरूप नहीं कहा जा सकता किंतु जिनके मतमें सर्वथा एक विज्ञानस्वरूप ही आत्मा है अथवा अन्य किसी एक ही स्वरूप है उनके मतमें आत्माका परिणमन नहीं बन सकता क्योंकि दूसरे किसी पर्यायस्वरूप परिणत होनेपर उसका विज्ञान वा अन्य कोई निश्चित स्वरूप कायम नहीं रह सकता तथा इसरीतिसे जब आत्माका परिणमन ही सिद्ध नहीं हो सकता तब उसके अंदर | द्रव्यका लक्षण न घटनेसे आत्मा पदार्थ ही सिद्ध नहीं हो सकता। तथा
__तदात्मकस्य तेनैव परिणामदर्शनात् क्षीरवत् ॥ १२॥ दूधका पतलापन मीठा सफेद आदि स्वभाव है उस स्वभावको न छोडकर जिससमय उसका गुड चीनी आदि पदार्थों के साथ संबंध होता है उससमय उसके गुड मिश्रित दूध चीनी मिश्रित दूध आदि नाम हो जाते हैं। तथा जिससमय वह गौके थनसे निकलता है उससमय गरम और थोडी देरी वाद | ठंडा हो जाता है। पुनः अग्निके संबंधसे वह गरम और गाढा हो जाता है फिर थोडी देर बाद ठंडा
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