Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्यान
बाचा
व्यामोह सिद्ध हुआ इसरीतिसे अमूर्तिक होनेसे 'आत्मगुणका शरावसे व्यामोह नहीं हो सकता यह कहना वाधित है।
यदि यहांपर चार्वाक नास्तिककी ओरसे यह कहा जाय कि अन्न जल हई आदि पदार्थोंके एक विलक्षण संयोग हो जानेपर जिसप्रकार मदशक्तिकी प्रकटता हो जाती है उसीप्रकार पृथिवी जल वायु आदिके विलक्षण संबंधसे सुख दुःख आदि आत्मिक गुणोंकी भी अभिव्यक्ति हो जाती है आत्मा कोई ॥ पदार्थ भिन्न नहीं ? सो ठीक नहीं । यदि सुख दुःख आदिको पृथिवी आदिके गुण माने जायंगे तो * जिसतरह उनके रूप आदि गुण हैं उसीप्रकार सुख दुःख आदि भी होने चाहिये परंतु सो बात नहीं
क्योंकि पृथिवी आदिके अवयव आपसमें मिले हों चाहे भिन्न हों उनके गुण रूप आदिकी क्रमसे हानि दीख पडती है-ऐसा कभी नहीं होता जो सर्वथा उनकी नास्ति हो जाय, परंतु शरीरके अवयव चाहेर आपसमें मिले हुए हों चाहे भिन्न हो सुख दुःख आदि गुणोंकी उनमें क्रमसे हानि नहीं होती, एक साथ ही नारित हो जाती है अर्थात् मृतशरीरमें सुख दुःखकी जरा भी सचा नहीं रहती इसलिये रूप आदि गुणों के साथ वैषम्य होनेसे सुख आदि पृथिवी आदिके गुण नहीं माने जा सकते। और भी यह बात है कि सुख दुःख आदि पृथिवी आदिके गुण माने जायगे तो मृतशरीरमें जिसतरह रूप आदि || गुण दीख पडते हैं उसतरह तत्काल मृतशरीरमें सुख दुःख आदि भी दीख पड़ने चाहिये क्योंकि जीवित शरीरके समान मृतशरीरमें भी पृथिवी आदिका संयोग है । यदि यहांपर यह कहा जाय कि जीवित शरीरमें एक सूक्ष्म भूतस्वरूप पदार्थ था और उसके रहते ही सुख दुःख आदिकी सचा थी । मृतशरीरमें वह नहीं रहा इसलिये उसमें सुख दुःख आदि नहीं ? सो भी ठीक नहीं। सूक्ष्म स्थलका
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