Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्यान
१०रा० भाषा
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अपनी उत्पचिमें किसी भी कर्मके उदय आदिकी अपेक्षा नहीं रखता इसलिये पारिणामिक है। परंतु-द
जीवका जो अनादि कर्मसंतति बंधनबद्धत्व धर्म है वह साधारण नहीं क्योंकि अनादिकालीन कर्मसंतति बंधनबद्धपना सिवाय जीवके और किसी पदार्थमें नहीं तथा वह अपनी उत्पचिमें कर्मकी निमिचता रखता है इसलिये वह पारिणामिक नहीं है । यह बात द्वितीय अध्यायके 'अनादिसंबंधे च' ॥५१॥ और 'सर्वस्य' ॥४२॥ इन सूत्रोंमें खुलासारूपसे बतलाई गई है।
पुद्गल जीव आदि द्रव्योंमें कोई द्रव्य संख्यातप्रदेशी है कोई असंख्यातप्रदेशी है कोई अनंतप्रदेशो है किंतु ऐसी कोई द्रव्य नहीं जो प्रदेशरहित हो इसतिसे समस्त द्रव्योंमें रहनेके कारण प्रदेशवत्व धर्म साधारण है तथा वह अपनी उत्पचिमें किसी भी कमके उदय आदिकी अपेक्षा नहीं रखता इसलिये पारिणामिकभाव है।
रूपका अर्थ स्पर्श रस गंध आदिक है जिन द्रव्यों में स्पर्श आदिक नहीं रहते वे सब अरूप कहे जाते हैं। जीव धर्म अधर्म आकाशं काल इन द्रव्योंमें रूपका संबंध नहीं। सब अरूप हैं इसलिये पुद्गलके सिवाय सबमें रहने के कारण अरूपत्व धर्म साधारण है तथा वह अपनी उत्पचिमें किसी भी कर्मके उदय | आदिकी अपेक्षा नहीं रखता इसलिये पारिणामिक है। ___द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा सब द्रव्य नित्य हैं किसीका भी उत्पाद और विनाश नहीं माना गया | इसलिये जीव आदि समस्त द्रव्योंमें रहनेके कारण नित्यत्व धर्म साधारण है तथा अपनी उत्पनिमें वह | कोंके उदय आदिकी कोई अपेक्षा नहीं रखता इसलिये वह पारिणामिकभाव है। . ..
अग्नि आत्मा आदि समस्त पदार्थों का ऊर्ध्वगमन रूप परिणाम स्वभावसे ही माना है इसलिये
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