Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
अज्ञानं त्रिविधं मत्यज्ञानं श्रुताज्ञानं विभंगं चति ॥६॥ बरा
मातिअंतान ततान और बिभगवानके भेदसे अज्ञान तीन प्रकारका है। इनको क्षायोपशामिक-दू माषा
हूँ| पना मतिज्ञान आदिके समान समझ लेना चाहिये । यहाँपर यह शंका न करनी चाहिये कि ज्ञानके ज्ञान ५३९ और अज्ञान ये दो भेद कैसे होगये ? क्योंकि जिससमय आत्मामें मिथ्यात्व कर्मका उदय रहेगा उस
समय उसके साथ एक जगह रहनेसे ज्ञान मिथ्या कहा जायगा और जिससमय आत्मामें मिथ्यात्व कर्मका उदय न रहेगा उससमय ज्ञानका संबंध मिथ्यात्वके साथ न रहने के कारण वह सम्यग्ज्ञान ही रहेगा इसका खलासा वर्णन ऊपर कर दिया जा चुका है।
___ दर्शनं त्रिविधं क्षायोपशमिकं चक्षुर्दर्शनमचक्षुर्दर्शनमवधिदर्शनं चेति ॥७॥ _चक्षु दर्शन अचक्षु दर्शन अवधिदर्शनके भेदसे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन तीन प्रकारका है । हूँ वीयांतराय और चक्षुर्दर्शनावरणके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय रहनेपर और सचामें उपशम
रहनेपर तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदय होनेपर चक्षुर्दर्शन होता है। वीांतराय और अचक्षुर्दर्शनाहै वरणके सर्वघाती स्पर्धकों के उदयाभावी क्षय रहनेपर और सचामें उपशम रहनेपर तथा देशघाती * स्पर्धकोंके उदय रहनेपर अचक्षुर्दर्शन होता है। एवं वीयांतराय और अवधिदर्शनावरण कर्मके सर्वघाती * स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय रहनेपर वा सचामें उपशम रहनेपर तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदय रहनेपर अवधिदर्शन होता है।
लब्धयः पंच क्षायोपशमिकाः दानलब्धिाभलब्धि गलब्धिरुपभोगलब्धिर्वीर्यलब्धिश्चेति ॥ ८॥ दानलब्धि लाभलब्धि भोगलब्धि उपभोगलब्धि और वीर्यलब्धिके भेदसे लब्धियां पांच हैं।
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