Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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योऽनतेनापि कालेन न सेत्स्यत्यसावभव्य एवेति चेन्न भव्यराश्यंतर्भावात् ॥९॥
भव्योंमें भी बहुतसे जीव ऐसे माने गये हैं जिन्हें अनंतकाल के बाद भी मोक्ष नहीं मिल सकती।15 अध्य 1. जो अभव्य है उनके लिये भी यह कहा गया है कि वे भी अनंतकालके वाद भी मोक्ष नहीं प्राप्त कर र सकते इसरीतिसे भव्य और अभव्योंको जब मोक्षकी प्राप्तिमें कालकी तुल्यता है तब वे भव्य भी अभव्य ₹ ही हैं। यदि यह कहा जायगा कि भव्योंकी सिद्धि हो जाती है तब अभव्योंकी सिद्धि भी हो सकती है। है फिर अंतमें सबकी सिद्धि हो जाने पर एक दिन समस्त जगत जीवशून्य कहा जा सकता है इसलिये है जो अनंतकालके बाद भी सिद्धि नहीं प्राप्त कर सकते उन्हें भी अभव्य ही कहना चाहिये ? सो ठीक
नहीं । कनकपाषाण एक प्रकारका पत्थर होता है जो कालांतरमें सुवर्णस्वरूप परिणत हो जाता है। ॐ यहांपर जो कनकपाषाण अनंतकालके बाद भी सुवर्णस्वरूप परिणत न होगा उसको भी जिसप्रकार ६ कनकपाषाण ही माना जाता है क्योंकि उसमें सुवर्णस्वरूप परिणत होनेकी शक्ति है और कारण
कलापके मिल जाने पर वह नियमसे एकदिन सुवर्णरूप परिणत होगा किंतु उस अन्धपाषाण अर्थात् हूँ वह कभी सुवर्णरूप परिणत होगा ही नहीं ऐसा पाषाण, नहीं माना जाता उसीप्रकार जिस भव्यको है अनंतकालके वाद भी मोक्ष नहीं प्राप्त होगी वह भी भव्य ही है क्योंकि भले ही उसके मोक्षकी प्राप्ति न है है हो परंतु उसमें उसके प्राप्त करनेकी शक्ति विद्यमान है और कारण कलापके मिल जाने पर अवश्य ही|
उसे मोक्ष प्राप्त हो सकती है इसलिये वह अभव्य नहीं कहा जा सकता । अथवा और भी यह बात है
कि जिस आगामीकालका समावेश अनंतकालमें न होगा वह आगामी काल ही न कहा जायगा यह 8 वात नहीं किंतु अनंतकालके.वाहिरका भी काल आगामीकाल है। इसरीतिसे जो भव्य अनंतकालके
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