Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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समस्त भोगांतराय कर्मके सर्वथा नष्ट हो जाने पर जो अतिशयवान अनंतभोग आत्मामें प्रगट । ॐ होता है यह क्षायिकभोग है और उसके प्रगट हो जाने पर पंचवर्णमयी सुगंधित पुष्पवृष्टि, अनेक
प्रकारकी दिव्य गंधवृष्टि, जहांपर केवली चरण रक्खें वहांपर सात कमलोंकी पंक्तिका होना, सुगंधित है धूपका महकना और सुखकारी शीतल पवनका चलना आदि वाह्य अतिशय केवलियोंके प्रगट हो है जाते हैं।
निरवशेषोपभोगांतरायप्रलयादनंतोपभोगः क्षायिकः ॥५॥ ____ उपभोगांतराय कर्मके सर्वथा नष्ट हो जानेपर जो आत्मामें अनंत उपभोग प्रगट होता है वह क्षायिक 1 उपभोग है । आत्मामें उपभोग भावके प्रगट हो जानेपर सिंहासन चौंसठ चमर अशोकवृक्ष तीन छत्र
भामंडल गंभीर और स्निग्ध (प्रिय) वचनोंका उच्चारण करनेवाली दिव्यध्वनि और देवदुंदुभि आदि अतिशय केवलियोंके होते हैं।
वीयांतरायात्यंतसंक्षयादनंतवीर्यं ॥६॥ ___ आत्माकी वास्तविक सामर्थ्यके विरोधी वीयांतराय कर्मके सर्वथा नष्ट हो जाने पर जो आत्मामें अनंतवीर्य प्रगट होता है उसका नाम क्षायिकवीर्य है । इस अनंतवीर्य भावके उदयसे केवलियोंके ज्ञानमें मूर्तिक अमूर्तिक समस्त पदार्थोंके जाननेकी शाक्त प्रगट हो जाती है।
पूर्वोक्तमोहप्रकृतिनिरवशेषक्षयात्सम्यक्त्वचारित्रे॥७॥ ____ ऊपर कहे गये मिथ्यात्व आदि दर्शनमोहनीयके तीन भेदोंका और चारित्रमोहनीयके पच्चीस भेदों का जिससमय सर्वथा नाश हो जाता है उससमय सम्यक्त्व और चारित्र गुण आत्मामें प्रगट हो जाते ६
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