Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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रा० भाषा
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[प्रमाण ही हो सकते हैं अधिक नहीं परंतु क्षायिक और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि इनसे बहुत अधिक है ||६|
अध्यावे | इसलिये संचयकालकी अपेक्षा क्षायिक और क्षायोपशामिक सम्यग्दृष्टियोंकी अपेक्षा उपशम सम्यग्दृष्टि ६ | थोडे हैं तथा जो अल्प होता है उसका पहिले निपात होता है इसलिये औपशमिक आदिमें पहिले औपशमिक भावका उल्लेख किया गया है। तथा
ततो विशुद्धिप्रकर्षयुक्तत्वात क्षायिकः॥१०॥ बहुत्वाच ॥११॥ । मिथ्यात्व सम्यामिथ्यात्व और सम्यक्त्वरूप सम्यग्दर्शनकी विरोधी इन तीनों प्रकृतियोंके सर्वथा । नाशसे क्षायिक सम्यकत्व होता है इसलिये औपशमिक सम्यक्त्वकी अपेक्षा क्षायिक सम्यक्त्वकी विशुद्धता अधिक होनेसे औपशामिक सम्यक्त्वके वाद सूत्रमें क्षायिक सम्यक्त्वका उल्लेख रक्खा है और भी | यह वात है कि-- है औपशमिक सम्यग्दृष्टियोंकी अपेक्षा क्षायिकसम्यग्दृष्टि अधिक हैं क्योंकि यहां आवलीका असंख्याहै। तवां भाग गुणकार माना है और असंख्यातवें भागके समय असंख्याते ही होते हैं इस नियमानुसार उस
गुणकारके असंख्याते समय माने हैं । इस गुणकारसे औपशमिक सम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिक सम्यग्दृष्टि PI गुणित हैं इसलिये आवलीके असंख्यातवे भाग गुणे होनेसे वे औपशमिक सम्यग्दृष्टियोंसे अधिक हैं।
तथा क्षायिक सम्यकत्वका संचयकाल तेतीससागर प्रमाण माना है और उसमें पहिले समयसे लेकर हर | एक समयमें इकट्ठे होनेवाले क्षायिक सम्यग्दृष्टि बहुतसे होते हैं इसलिये उस आवलीके असंख्यातवेंभाग || | गुणकार प्रमाण उपशम सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं इसरीतिसे औपशमिक सम्यग्दृष्टियोंकी || अपेक्षाक्षायिक सम्यग्दृष्टि अधिक होनेसे सूत्र में औपशमिकके बाद क्षायिक शब्दका उल्लेख किया गयाहै।
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