Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
करणत्रय रूप परिणाम वह प्राप्त करता है उनमें अनिवृत्त करणरूप परिणामके उत्पन्न होते ही नियमसे 9 अंतर्मुहूर्तमें सम्यक्त्व प्राप्त होता है इसे ही करणलब्धि कहते हैं किंतु इससे भिन्न जीवमें प्रथम सम्प६ क्त्व प्राप्त करनेकी योग्यता नहीं तथा प्रथमोपशम सम्यक्त्वका काल अंतर्मुहूर्त ही है इसलिये जिस 5 हूँ जीवके प्रथमोपशम सम्यक्त्व होता है उसके अंतर्मुहूर्त ही वह ठहरता है उसीकालमें वह जीव सत्तामें बैठे हूँ हूँ हुए मिथ्यात्व कर्मके तीन टुकडे कर डालता है मिथ्यात्व, सम्यगमिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति इसके टू है पहले अनादि मिथ्यादृष्टिके पांच प्रकृतियोंका ही उपशम होनेसे प्रथमोपशम सम्यक्त्व होता है।
दर्शन मोहनीय कर्मका उपशम चारों गतियोंके अंदर होता है । नरकगतिमें पर्याप्तक नारकियोंके है ही प्रथमोपशम सम्यक्त्व होता है अपर्याप्तकोंके नहीं तथा पर्याप्तक नारकियोंके भी अन्तर्मुहूर्त के बाद हो प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति होती है अंतर्मुहूर्तके पहिले नहीं । यह नियम सातो नरकोंके नार. कियों के लिये है । रत्नप्रभा शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा इन तीन नरकोंके निवासी नारकियों में किन्हीं नारकियोंके जातिस्मरणसे प्रथमोपशम सम्यक्त्व हो जाता है और किन्हींके धर्मके श्रवण करनेसे वा तीव्र वेदनासे व्याकुल होनेपर होता है । वाकी पंकप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा महातमःप्रभा इन चार नरक- हूँ वासी नारकियोंमें किन्हींके जातिस्मरण तो किन्हींके वेदनासे अभिभूत रहने पर प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्त होता है । नीचके चार नरकोंमें धर्मश्रवणका अवसर नहीं मिलता। ___तियचोंमें भी पर्याप्तक तिर्यंच ही प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्ति कर सकते हैं अपर्याप्तक नहीं तथा पर्याप्तक भी दिवस पृथक्त्व अर्थात् सात आठ दिनके वाद प्राप्त कर सकते हैं भीतर नहीं । यह नियम द्वीप समुद्रनिवासी जितने भी तिथंच हैं सबके लिये है । उनमें किन्ही तियंचोंके पूर्वजन्मके स्मरणसे 8
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