Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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त०रा० भाषा
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BHASABHABHISHTRANSINGINEERA
र्थिक और पर्यायार्थिक नयोंके ही भेद हैं। इन्हीं सातोंमें आदिकी चार नय तो गुणोंको विषय करने |
अध्याय से अर्थनय कहलाती हैं और अंतकी तीन नय शब्दको विषय करनेसे शब्दनय कहलाती हैं।
व्यवहार नय भेदोंको विषय करता है और उसके सद्भूत व्यवहार असद्भूत व्यवहार और उप-12 चरितासभूत व्यवहारके भेदसे तीन भेद हैं जिस नयके द्वारा सत्-ठीक व्यवहार हो अर्थात् जिस | वस्तुके जो गुण और पर्याय हैं वे उसीके कहे जांय परंतु भिन्नता से कहे जांय वह सद्भूत व्यवहार नय ||5||
है। जिसके द्वारा असत् व्यवहार हो अर्थात् अन्यके गुण पर्याय अन्यके कहे जांय वह असदुद्भूत व्य-18|| ४ वहारनय है और जिसके द्वारा औपचारिक असत् व्यवहार हो वह उपचरितासद्भूत व्यवहार नय है।
सद्भूत व्यवहारके-शुद्धसद्भूत व्यवहार और अशुद्धसद्भूत व्यवहारके भेदसे दो भेद हैं शुद्ध गुण और शुद्ध गुणीका भेद कहना जिसतरह जीवके केवलज्ञानादि गुण हैं अथवा शुद्ध पर्याय और शुद्ध पर्यायीका भेद कहना जिसतरह सिद्धजीवकी सिद्धपर्याय है यह शुद्ध सद्भूत व्यवहार है एवं अशुद्ध || गुण और अशुद्ध गुणीका भेद कहना जिसप्रकार जीवके मतिज्ञान आदि गुण हैं अथवा अशुद्धपर्याय || | और अशुद्ध पर्यायीका भेद कहना जिसतरह संसारी जीवकी देव आदि पर्याय हैं यह अशुद्धसद्भुत 15 व्यवहारनय है। . असदुभूतव्यवहार-स्वजात्यसद्भूतव्यवहार १ विजात्यसद्भूतव्यवहार २ और स्वजातिविजात्य-15 सद्भूतव्यवहारके ३ भेदसे तीनप्रकारका है। जिसके द्वारा स्वजातिसंबंधी असत् व्यवहार होता हो वह है। स्वजात्यसद्भूतव्यवहारनय है जिसप्रकार परमाणु बहुप्रदेशी है। यहांपर.बहुप्रदेशी पुद्गल द्रव्य परमाणु का सजातीय है परंतु परमाणु बहुप्रदेशी नहीं, वह एकप्रदेशी ही है इसलिये एकप्रदेशीकी जगह बहु.
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