Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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ने उपालंभ दिया है । वास्तवमें तो जो वादीने केवल तंतुओंका कार्य बतलाया है वह अपने (तंतु) हैं। अवयवोंकी अपेक्षा न कर प्रत्येक तंतू भी उक्त कार्यके करनेमें समर्थ नहीं हो सकता। इसलिये परस्पर निरपेक्ष रहनेपर कोई भी कार्य नहीं हो सकता यह हमारा कहना कभी बाधित नहीं हो सकता। यदि | यहाँपर फिर यह शंका की जाय कि| निरपेक्ष तंतुओंमें शक्तिकी अपेक्षा पट आदि कार्य करनेकी सामर्थ्य है इसलिये निरपेक्ष तंतु पट | है आदि कार्यस्वरूप कहे जा सकते हैं ? इसका समाधान यह है कि निरपेक्ष नयोंका नाम और उनका || के भिन्न भिन्न ज्ञान भी सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिमें कारणरूप शक्ति रखता ही है । इसलिये निरपेक्ष भी नय है
सम्यग्दर्शनके कारण बन सकते हैं इस रीतिसे दृष्टांत और दाष्टांत दोनों में समानता रहनेसे तंतुओंको
उदाहरणको विषम उदाहरण बतलाना असंगत है। का विशेष-सब नयोंके मलभेद निश्चय और व्यवहार दो हैं निश्चयनयका अभेद विषय है और व्यव
हारका भेद विषय है। इन दो ही भेदोंके और सब भेद हैं। निश्चयनयका अर्थ वास्तविक है वस्तुका। | वास्तविक स्वरूप है वह द्रव्य और पर्याय दो भेदोंमें विभक्त हैं इसलिये निश्चयनयकी सिद्धि द्रव्यार्थिक हूँ | और पर्यायार्थिकके आधीन मानी है अतः द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये दोनों नय सत्यार्थनय हैं। है जो नय द्रव्यको विषय करती हैं वे द्रव्यार्थक और जो पर्यायको विषय करती हैं वे पर्यायार्थिक हैं। है। नैगम संग्रह और व्यवहार ये तीन नय द्रव्यको विषय करनेवाली हैं इसलिये द्रव्याार्थक हैं और ऋजु सूत्र आदि चार नय पर्यायोंको विषय करती हैं इसलिये पर्यायार्थिक हैं इस रीतिसे ये सातों नय द्रव्या-|- ||११
१। णिच्छयववहारणया मूलं मेया णयाण सन्माणं । णिच्छयसाहणहेओ दव्यय पज्जच्छिया मुणह ॥१॥
BABIRECECASSASARSANE