Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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त०रा० भाषा
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| उत्तरोत्तर अनुकूल विषयके धारक नय अनंत शक्तिस्वरूप द्रव्यको प्रतिशक्तिकी अपेक्षा भिन्न होते जाते हैं इसलिये नयों के बहुतसे भेद हैं।
अध्याय इसप्रकार जिसतरह आपसमें एक दूसरेकी अपेक्षा करनेवाले तंतू जिस समय बुन जाते हैं उसका समय उनकी पट आदि संज्ञा हो जाती है और पुरुषोंके शीतनिवारण आदि प्रयोजनीय कार्योंके सिद्ध करने में समर्थ हो जाते हैं किंतु वे ही जब जुदे जुदे रहते हैं उससमय किसी भी प्रयोजनीय कार्यको सिद्ध नहीं कर सकते उसीप्रकार परस्पर सापेक्ष-आपसमें एक दूसरेकी अपेक्षा रखनेवाले और कहीं गौण तो कहीं प्रधानरूपसे विवक्षित ही नय सम्यग्दर्शन के कारण हैं। यदि वे परस्पर सापेक्ष न होंगे तो कभी , सम्यग्दर्शनके कारण नहीं हो सकते । शंका
निरपेक्ष तंतू शीतनिवारण आदि किसी भी अर्थक्रियाको नहीं करते यह कहना ठीक नहीं क्योंकि | कोई कोई तंतू चर्मकी-शरीरके अंशकी रक्षा करनेवाला तथा, एक वकलका तंतू वजनके बांधने में समर्थ || देखा गया है परन्तु नय जब निरपेक्ष होते हैं उस समय इनसे कोई भी अर्थक्रिया सिद्ध नहीं होती इस लिये ऊपर जो तंतुओंका दृष्टांत दिया गया है वह विषम है ? सो ठीक नहीं । निरपेक्ष तंतू पट आदि ।
कार्यरूप होनेमें समर्थ नहीं हो सकते हमारा यह कहना है किंतु वादीने जो चर्म रक्षा करना वा किसी र ६ किसी वकलके तंतुओंसे बजनका बांधा जाना कार्य बतलाया है वह पट आदिका कार्य नहीं । वह केवल तंतूमात्रका कार्य है इसलिये हमारे कथनका ठीक तात्पर्य न समझ विषम उदाहरण कहनेका वृथा वादी
१ निरपेक्षा नया मिथ्याः सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकत् ॥ १०८ ॥ देवागम स्तोत्र अर्थात् परस्पर निरपेक्ष नय मिथ्या हैं और परस्पर Clot | सापेक्ष कार्यकारी हैं। हे भगवन् ! आपके मतमें-जिन मतमें सापेक्ष नथ ही कार्यकारी वस्तु है।
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