Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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है इसलिए उसका वर्णन करना चाहिए परंतु जहां मोक्ष और उसके कारणोंका वर्णन किया गया है वहां चारित्रका भी वर्णन किया गया है अतः चारित्रके वर्णनका क्रम उलंघनकर आवश्यक समझ नयोंका वर्णन किया जाता है। चारित्रका यहांपर वर्णन न कर मोक्षप्रकरणमें क्यों किया गया है इसका समाधान यह है कि समस्त कर्मोंका सर्वथा नाश चारित्रमे होता है और समस्त कौका सर्वथा नाशस्वरूप ही मोक्ष है इसलिए मोक्ष प्राप्तिमे चारित्रप्रधान कारण है क्योंकि व्युपरतक्रिया नामके शुक्लध्यान द्वारा आत्मा जिससमय अनुः | पम अचिंत्य बल प्राप्त कर लेता है उससमय वह समस्त कमाँको मूलसे नष्ट कर डालता है इसलिये जहॉपर मोक्षके कारण और मोक्षके स्वरूपका उल्लेख है वहीं पर चारित्रका वर्णन किया गया है। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि जिससमय आत्मा क्षायिक सम्यक्त्व और केवल ज्ञानका धारक बन जाता है उससमय क्षायिक ज्ञान-केवलज्ञानके वाद ही समस्त कर्मोंका नाश होता है इसलिये क्षायिकज्ञान केवल ज्ञान भी जब समस्त कर्मों के नाशमें कारण है तब चारित्रसे समस्त कर्मोंका नाश होता है यह कहना व्यर्थ है ? सो ठीक नहीं। समस्त कर्मों का नाश चारित्र से ही होता है क्योंकि यदि क्षायिक सम्यक्त्व
और क्षायिक ज्ञान समस्त कर्मोंके नाशमें कारण माने जायेंगे तो केवलज्ञानकी उत्पचिके वादही समस्त कर्मोंका नाश होना चाहिये किंतु वैसा न होकर उन काँका सर्वथा नाश व्युपरतक्रियानिवृत्ति ध्यान के वाद ही होता है और उसे ही उत्तम चारित्र माना गया है क्योंकि "कर्मादानहेतुक्रियाव्युपरति चारित्रमिति” जो क्रियायें कर्मों के लाने में कारण हैं उनका सर्वथा नष्ट हो जाना चारित्र है, अर्थात् | व्युपरतक्रियानिवृत्ति चारित्रसे ही समस्त काँका नाश होता है इसरीतिसे क्षायिक सम्यक्त्व और ज्ञान कारण न होकर जब समस्त कर्मोंके सर्वथा नाशमें साक्षात् कारण चारित्र ही है तब जहां पर मोक्ष
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