Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
अध्याय
P के प्रयोग अथवा उत्तम पुरुषकी जगह मध्यम पुरुष आदि मानना साधन व्यभिचार है और उसकी निवृचि शब्दनयसे है । जिसतरह-एहि मन्ये रथेन यास्यसि यातस्ते पिता'। अर्थात् जाओ मैं ऐसा समझता हूं कि तुम रथसे जाओगे परंतु अब न जाओगे तुम्हारा पिता चला गया। इस वाक्यके शब्दों
का अर्थ तो यह होता है परंतु यहां हास्य होनेसे व्याकरणके नियमानुसार युष्मद्की क्रियामें अस्मद्, है और अस्मद्की क्रिया में युष्मद् हो गया है एवं अर्थ होता है कि तू जो रथसे जाना चाहता था सो उस टू
पर तो तेरा बाप चढकर चला गया यहांपर 'एमि' इस उत्तम पुरुषकी जगह एहि' यह मध्यम पुरुष, 'मन्यसे इस मध्यम पुरुषकी जगह मन्ये" यह उत्तम पुरुष और 'यास्यामि' इस उत्चमकी जगह यास्यसि'
यह मध्यम पुरुष किया गया है अथवा 'मैं' की जगह 'तू' और 'तू' की जगहपर 'मैं इसप्रकार युष्मद् । अस्मद् शब्दोंके प्रयोगका विपरिवर्तन किया गया है इसलिये यहांपर साधन व्यभिचार है।
इसीप्रकार काल आदिका भी व्यभिचार है और उसकी शब्दनयसे निवृत्ति मानी गई है । वह 4 इसप्रकार है_ भविष्यत् आदि कालोंमें होनेवाले कार्यका भूतकालमें होना मान लेना काल व्यभिचार है। जिस हूँ तरह "विश्वदृश्वास्य पुत्रो जनिता" जिसने समस्त ब्रह्मांडको देख लिया है ऐसा इसके पुत्र होगा। यहां है पर समस्त ब्रह्मांडका देखना भविष्यत् कालका कार्य है उसका भूतकालमें होना मान लिया गया है
१ सर्वार्थसिद्धिमें साधनव्यभिचारः (कारकन्यभिचारः) सेना पर्वतमधिवसति । पुरुषव्यभिचारा एहि मन्ये रथेन यास्यसि नहि यास्यसि यातस्ते पिता, अर्थात साधनका र्य कारक माना है और साधन व्यभिचारका सेना पर्वतमें रहती है यह उदाहरण दिया है। पुरुष व्यभिचार एक जुदा व्यभिचार माना है और उसका एहि मन्ये रथेनेत्यादि उदाहरण दिया है।
SNECTOR HERBARIUSHRSS
१७८