Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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और वेसीझेकी अपेक्षा ऋजुसूत्रनयका कथंचित् पच्यमान और कथंचित् पक्क यह विषय बाधित नहीं। यदि यहां पर यह अपेक्षा न मानी जायगी और पच्यमान अवस्था और पक्क अवस्थाका सर्वथा विरोध माना जायगा तो पच्यमान (मिश्रित) कथंचित् पच्यमान और पक्क इसतरह विषयोंके तीन भेद हो | जानेसे समय भी तीन प्रकारका मानना होगा परंतु तीनभेदोंको सर्वथा विरुद्ध माननेसे एक समयमें र
वेतीनों भेद नहीं रह सकते इसलिये कथंचित् पच्यमान और कथंचित् पक्को सर्वथा विरोध नहीं माना तं जा सकता इसलिये यहां यह वात समझ लेनी चाहिये कि किसी पकानेवालेका यह अभिप्राय हो कि * जो चावल अच्छी तरह सीझ गये हैं कोई भी कच्चा बाकी नहीं है उसकी अपेक्षा तो अच्छी तरह पके
हुए चावल ही पक्क हैं। और जिस पकानेवालेका यह अभिप्राय हो कि वह कुछ सीझे और कुछ वेसीझे १ कथंचित् पच्यमान और कथंचित् पक्क ऐसे पच्यमान चावलोंको ही पक्क कहना चाहता है उसकी अपेक्षा १ पच्यमान ही पक है। क्योंकि वह पच्यमानोंको ही पक मानना सुखप्रद समझता है इसलिये यह वात
निश्चित हो चुकी कि ऋजुसूत्र नयका पच्यमान अर्थात् कथंचित् पच्यमान कथंचित् पक्क उदाहरण ९ निर्दोष है तथा पक्क-पक चुकनेके बाद एक समयवर्ती पदार्थ भी ऋजुसूत्र नयका विषय है इसीतरह है क्रियमाण कृत (कथंचित् क्रियमाण कथंचित् कृत), भुज्यमान भुक्त ( कथंचित् भुज्यमान कथंचित्
भुक्त) बध्यमान बद्ध (कथंचित् बध्यमान कथंचित् बद्ध) और सिध्यत् सिद्ध (कथंचित् सिध्यत कथंचित् सिद्ध ) आदि भी ऋजुसूत्रनयके उदाहरण समझ लेने चाहिये । अर्थात् जो किया जा रहा है और जो किया जा चुका है और जो भोगा जा रहा है और जो भोगा जा चुका है जो सिद्ध किया जा रहा है जो सिद्ध किया जा चुका है, ये सब भी ऋजुसूत्रनय के विषय पडते हैं, क्योंकि इन सबोंमें भी कुछ अंशोंमें