Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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मानकालका विषय मानकर ऋजुसूत्रनयका विषय कह सकते हैं । सो भी ठीक नहीं। ऐसा कहने से वचनविशेष और तदवस्थ दोष 'जो कि ऊपर बता दिया गया है' दो दोष होते हैं । उनमें वचनविरोध दोष इसप्रकार हैऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा संपूर्ण पलालका जलना असंभव है इसलिये यदि पलालके एक देशके जलने से ही संपूर्ण पलालका जलना माना जायगा तो वादीका वचन प्रतिवादी (जैन) के पक्षका संपूर्ण रूपसे दूषक नहीं हो सकता क्योंकि ऋजुसूत्रनयके विषयभूत शुद्ध वर्तमानकाल में संपूर्ण पलालका यदि जलना सिद्ध हो सके तो 'पलालका जलनारूप' संपूर्ण पक्ष दूषित हो सकता है किंतु उस एक समय में तो एक देशका जलना ही हो सकता है इसलिये एक पक्षका ही दूषक हो सकता है परंतु वादी संपूर्ण पक्षको दूषित करना चहता है और यहां पर एक पक्ष ही दूषित होता है इसलिये वचनविरोध है । यहां पर यह न कहना चाहिये कि एक देशके दूषित होने से समुदाय दूषित माना जायगा इसलिये वचनविरोध नहीं हो सकता ? क्योंकि एक देशके दूषित होनपर समुदाय दूषित हो जाता है ऐसा सर्वथा सिद्ध करना सामर्थ्य के बाहिर है अतः इस वचनविरोधरूप दोषले संपूर्ण पदार्थका जलना असंभव होनेसे एक देशके दाइसे संपूर्ण पदार्थका दाह माना जा सकता है यह कहना अयुक्त है । तथा पलालका जो एक देश जल रहा है उससे वाकीका बचा एक देश तदवस्थ है- विना जला हुआ है, और उसका जलना असंख्पात समयका कार्य है जो कि शुद्ध वर्तमानकालके एक समयमात्र ऋजुसूत्रनयका विषय हो ही नहीं सकता इसलिये तदवस्थ दोष से भी पलालका जलना वर्तमानकालीन एक समयवर्ती नहीं कहा जा सकता क्योंकि पलालके अवयव अनेक हैं उनमें यदि कुछ अवयवों के जलने से संपूर्ण पलालका
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अध्याप १
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