Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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विज्ञानवादियोंका कहना है कि-परमाणु नामका कोई भी बाह्य पदार्थ नहीं किंतु विज्ञान ही एक पदार्थ है और परमाणुके आकार परिणत होनेके कारण वह विज्ञान ही परमाणु कहा जाता है परन्तु
उन्हें भी पदार्थोंका ग्रहण करना, पदार्थोंका झलकना और जाननारूप शक्ति इन तीन शक्तियोंका * आधार विज्ञान स्वीकार करना पड़ा है इसलिये ग्राहक विषयाभास और संविचि इन आपसमें विरुद्ध भी ६
तीन शक्तियोंका आधार भी एक विज्ञान विरुद्ध नहीं माना जाता उसीप्रकार अस्तित्व नास्तित्व आदि टू अनेक आपसमें विरुद्ध धर्मोंका आधार भी एक घट विरुद्ध नहीं कहा जा सकता।
तथा यह सभी सिद्धांतकारोंको मानना पडेगा कि एक ही पदार्थ अपने पूर्वकालके पर्यायकी ९ अपेक्षा कारण और उचर कालके पर्यायकी अपेक्षा कार्य माना जाता है जिस तरह मिट्टीसे घट बनाया हूँ जाता है वहांपर घटसे पहिले रहनेवाला मिट्टीका कुसूलरूप पर्याय कारण माना जाता है और उत्तर# कालमें होनेवाला मिट्टीका ही घट पर्याय कार्य माना जाता है यहां यद्यपि कार्य और कारण दोनों है
आपसमें विरुद्ध धर्म हैं। जो कार्य है वह कारण नहीं हो सकता और जो कारण है वह कार्य नहीं हो है सकता परन्तु पूर्वकालमें रहनेवाले पर्यायकी अपेक्षा कारण और उत्तर कालमें रहनेवाले घट पर्यायकी अपेक्षा कार्य इस तरह दोनोंका एक ही मिट्टी पदार्थमें होना विरुद्ध नहीं माना जाता उसी तरह अस्तिख नास्तित्व आदि विरुद्ध भी धर्मोंका स्वरूप पररूपकी अपेक्षा एक भी घट आदि किसी पदार्थमें रहना विरुद्ध नहीं कहा जा सकता ॥६॥ इसप्रकार जीव अजीव आदि पदार्थोंके ज्ञानके उपाय प्रमाण और नय बतला दिये गये और भी उन्हींके ज्ञानके उपाय सूत्रकार बतलाते हैं
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