Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा दो प्रकारसे जीव द्रव्यकी स्थिति मानी है उनमें द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा तो जीवद्रव्यकी स्थिति अनादि अनंत है क्योंकि सामान्यरूपसे चैतन्य उपयोग और असंख्यात प्रदेश आदि स्वरूप जीव द्रव्यका कभी भी नाश नहीं होता तथा पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा जीव द्रव्यकी स्थिति एकसमय आदि है क्योंकि पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा जीव भिन्न भिन्न पर्यायोंको धारण करता रहता है जिस पर्यायमें एकसमय जीकर मर जाता है उस पर्यायकी ६,
अपेक्षा जीवकी स्थिति एक समय है । जिस पर्यायमें दो समय चार समय घंटा एकदिन एकमास एकवर्ष हूँ है आदि जीकर मरजाता है वहां पर अपने अपने पर्यायोंकी अपेक्षा दो समय चार समय आदि जीवकी है स्थिति है । जीव द्रव्य के कितने भेद हैं ? इस प्रश्नका समाधान
नारकादिसंख्येयासंख्येयानंतप्रकारो जीवः॥१३॥ निश्चय नयकी अपेक्षा जीवका कोई भेद नहीं किंतु व्यवहार नयकी अपेक्षा नारकी मनुष्य आदि संख्यात असंख्यात और अनंत उसके भेद हैं । इसप्रकार निश्चय और व्यवहार नयकी अपेक्षा जीव क द्रव्यमें निर्देश स्वामित्व आदि भेदोंका निरूपण करदिया गया। अब
तथेतरेषामागमाविरोधाग्निर्देशादिवचनं ॥१४॥ जिसतरह जीव द्रव्यमें निर्देश आदिका निरूपण शास्त्रानुकूल किया है उसीप्रकार अजीवआदिमें भी शास्त्रानुकूल निर्देश आदिका निरूपण किया जाता है । अजीवद्रव्यसे पुद्गल धर्म अधर्म काल 2 आकाशका भी ग्रहण किया गया है और आस्रव आदिका भी ग्रहण किया गया है। वह इसप्रकार है
निश्चयनयसे पुद्गल द्रव्य इन्द्रिय आदिदश प्राणोंसे रहित है और व्यवहारसे वह नाम स्थापना
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