Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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त०रा०
भाषा
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| पृथ्वी आदि अनेक कारणोंसे कमलकी उत्पत्ति होती है तो भी 'पंके जातं पंकजं' कीचडमें जो उत्पन्न हो वह कमल है यहां पर कीचड़का उल्लेख किया है । ५ । धूप चूर्ण वास अनुलेपन और प्रघर्षण आदिमें तथा पद्म मकर हंस सर्वतोभद्र चक्रव्यूह आदिमें चेतन और अचेतन द्रव्यों के विभाग के अनुसार रचनाका प्रगट करनेवाला जो वचन है वह संयोजना सत्य है अर्थात् अनेक पदार्थों के मिलनेसे धूप बनती है उसे घूपके नामसे कहना तथा सेनामें चेतन अचेतन दोनों प्रकारके समुदायस्वरूप चक्रव्यूह आदि रचना मानी है तो भी उसे चक्रव्यूहके नामसे पुकारना यह सब संयोजना सत्य है । आर्य और अनायके निवास स्थान वचीस हजार देशों में धर्म अर्थ काम और मोक्ष चारो पुरुषार्थोंको प्राप्त करानेवाला वचन कहना जनपदसत्य है । जो वचन गांव नगर राजा गण-मुनियों का समूह पाखंड जाति और कुल आदिकी रीति रिवाज का बतलानेवाला हो वह देशसत्य है । यद्यपि छद्मस्थ - अल्प ज्ञानीको पदार्थों के यथार्थस्वरूपका ज्ञान नहीं होता तो भी संयमी और संयतासंयत व्रती अपनी क्रियाओंका भले प्रकार पालन करसके इसकारण उनकी क्रियाओंकी रक्षार्थ जो यह कह देना है कि यह द्रव्य प्रासुक है और यह अप्रासुक है वह भावसत्य है | और आगमगम्य जीव आदि छहौ द्रव्यों की जुदी जुदी पर्यायोंका जो यथार्थस्वरूप प्रतिपादन करना है वह समयसत्य है ।
जहाँपर आत्मा के अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनित्यत्व कर्तृत्व भोक्तृत्व आदि गुणोंका युक्तिपूर्वक वर्णन हो और षट् जीव निकाय के भेदों का भी युक्तिपूर्वक वर्णन हो वह आत्मप्रवाद पूर्व है । कर्मों का बंघ, उदय, उपशम, निर्जराके पर्याय अनुभाग- विपाक, प्रदेश, आधार, जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट स्थितिका जहां विस्तारसे वर्णन है वह कर्मप्रवाद पूर्व है । जिस पूर्व में व्रत नियम प्रतिक्रमण प्रतिलेखन तप कल्प
अध्याय
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