Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जीवके क्षायिक और पारिणामिक भावोंको तथा धर्मास्तिकाय आदिको क्यों अवधिज्ञान विषय नहीं करता ? क्योंकि रूप रस आदि विशिष्ट ही पदार्थ अवधिज्ञानके विषय होते हैं । क्षायिक और पारिगामिक भाव तथा धर्मास्तिकाय आदि पदार्थ अरूपी हैं इसलिये वे अवविज्ञान विषयभूत नहीं हो सकते ॥ २७॥ - अब मनापर्ययज्ञानका विषय सूत्रकार बतलाते हैं
___ तदनंतभागे मनःपर्ययस्य॥२८॥ जो रूपी पदार्थ सर्वावधिका विषय है उसके अनंतवें भागको मनःपर्ययज्ञान विषय करता है ॥२०॥ अब सब ज्ञानोंके अंतमें कहे जानेवाले केवलज्ञान के विषयका वर्णन सूत्रकार करते हैं
सवद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ॥२६॥ केवलज्ञानके विषयका नियम समस्त द्रव्योंकी समस्त पर्यायोंमें है अर्थात् एक एक द्रव्यकी त्रिका | लवर्ती अनंतानंत पर्याय हैं सो छहों द्रव्योंकी समस्त अवस्थाओंको केवलज्ञान युगपत-एक साथ जानता है । यहां पर द्रव्य पदार्थका विवेचन किया जाता है
स्वपर्यायान् द्रवति द्रुयते वा तैरिति द्रव्यं ॥१॥ जो अपने पर्यायोंको प्राप्त करें अथवा जिसके द्वारा अपने पर्याय प्राप्त किये जाग उसका नाम द्रव्य है । दूधातुसे यत् प्रत्यय करने पर द्रव्य शब्दकी सिद्धि हुई है । यद्यपि यहां यह शंका हो सकती | है कि कर्ममें 'यत्' प्रत्यय करने पर द्रव्य शब्द सिद्ध हो सकता है, कामें यत् प्रत्यय कैसे होगा परंतु
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