Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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व्यवहार है इसरीतिसे जहांपर भूतकालके पदार्थका संबंध है. वहीं पर भावि संज्ञा व्यवहारको प्रवृचि है किंतु जहाँपर भूत कालके पदार्थके साथ संबंध नहीं वहां पर भावि संज्ञाव्यवहार नहीं होता । नैगम नयका जो विषय बतलाया है उसमें भूत पदार्थके साथ संबंधकी कोई अपेक्षा नहीं है किंतु वहां तो आगे होनेवाले कार्यको देखकर संकल्प मात्रका ग्रहण है इसलिये नेगम नयका विषय भावि संज्ञा व्यव-13 हार नहीं कहा जा सकता। इसका खुलासा यह है कि भावि संज्ञा व्यवहारमें तो कुमारको यह कहते हैं।
कि यह राजा होनेवाला है परंतु नैगम नयमें-ऐसा नहीं कहते हैं किंतु यह राजा है ऐसा वर्तमानमें | इ भविष्यत्का संकल्प कर उसीका प्रयोग करते हैं । शंका-.
उपकारानुपलंभात्संव्यवहारानुपपत्तिरिति चेन्नाप्रतिज्ञानात् ॥४॥ जहांपर उपकार दीख पडे वही कार्य करना ठीक है। भाविसंज्ञाके विषय राजा आदिमें उपकारकी उपलब्धि है क्योंकि कुमार आदिको राजा आदि कहना उपकारस्वरूप है कितु नैगमनयके विषयमें | 2 कोई उपकार जान नहीं पडता इसलिये उसका कोई पदार्थ विषय मानना निरर्थक है । सो ठीक नहीं।
हमने यह प्रतिज्ञा कहां की है कि उपकार रहते ही नैगमनयका विषय हो सकता है । किंतु यहाँ नैगम || नयके विषयका दिग्दर्शन कराया गया है परंतु हां ! यह भी बात नहीं कि नैगमनयका विषय उपकार रहित ही है किंतु जहां वह विषय उपकारयुक्त होगा वहां नैगम नयका विषय उपकारसहित भी हो सकता है इसलिये नैगम नयका विषय उपकारशून्य है यह कहना निमूल है।
स्वजात्यविरोधेनैकत्वोपनयात्समस्तगृहणं संगृहेः ॥५॥ १ स्वजात्यविरोधेनैक यमुपनीय पर्याशकांतभेदानविशेषेण समस्तग्रहणात् संग्रहः । सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ ७८। ..
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