Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
में नीचेकी ओर अवधिज्ञानका विषय साढे तीन (गव्यूति) कोस है । तीसरी बालुका प्रभा पृथिवीमें तीन कोस है । चौथी पंकप्रभामें ढाई कोस, पांचवीं धूपप्रभामें दो कोस, छठी तमः प्रभाग डेढ कोस |
और सातवीं महातम प्रभाग अवधिज्ञानका विषय नीचेकी और एक कोस है । तथा रत्नप्रभा आदि II All सब पृथिवियोंके नारकियोंका ऊपरकी ओर अवधिज्ञानका विषय अपने अपने रहनेके विलोंकी चोटी ||
तक है उससे ऊपरके पदार्थों को वह विषय नहीं करता और नारकियोंके अवधिज्ञानका तिरछी ओर | विषय असंख्यात कोडाकोडी योजन प्रमाण है यह क्षेत्रकी अपेक्षा नारकियोंके अवधिज्ञानका विषय | कहा गया है। काल द्रव्य और भावकी अपेक्षा पहिलेके समान समझ लेना चाहिये अर्थात् नारकियोंकाइ
अवधिज्ञान जितने क्षेत्रको विषय करता है और उस क्षेत्रमें जितनी संख्याप्रमाण आकाश के प्रदेश रहते है। हैं उतनी ही संख्याप्रमाण काल द्रव्य भूत भविष्यत् वर्तमान कालके समय अवधिज्ञानके विषय होते हैं | | तथा उतनी ही संख्याप्रमाण संख्यात भेद अनंत प्रदेशोंके धारक पुद्गलस्कंध उसके विषय होते हैं और उतनी ही संख्याममाण कर्मविशिष्ट जीव उनके अवधिज्ञान के विषय होते हैं तथा भावकी अपेक्षा अपने
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१। अमरकोष आदिमें गव्यूति शब्दका अर्थ दो कोस ग्रहण किया है परन्तु यहां पर उसका एक कोस ही अर्थ ग्रहण करना चाहिये । गोम्मटसारजीमें भी कोसके हिसायसे ही नारकियों के नीचेकी ओर अवधिज्ञानका विषय बतलाया है । यथा
सत्तपखिदिम्मि कोसं कोसस्सद्धं पबढदे ताव ।
जावय पढमे निरये जोयणमेकं हवे पुगणं ॥ ४२३ ॥ सातमी भूमिमें अवधिज्ञान के विषयभूत क्षेत्रका प्रमाण एक कोस है इसके ऊपर आध बाघ कोसकी वृद्धि तब-तक होती है जब तक कि प्रथम नरकमें अवधिज्ञानके विषपभूत क्षेत्रका प्रमाण पूर्ण एक योजन हो जाता है।