Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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HSASARSASURE
अर्तीद्रियेषु मतेरभावात्सर्वद्रव्यासंप्रत्यय इति चेन्न नोइंद्रियविषयत्वात् ॥ ४॥ मतिश्रुतयोरित्यादिसूत्रमें मतिज्ञान के विषय समस्त द्रव्योंके कुछ पर्याय बतलाये हैं। यदि मतिज्ञान पदार्थोंके जाननेमें इंद्रियों की अपेक्षा रक्खेगा तो धर्म अधर्म आदि अतींद्रिय पदार्थों के जानने इंद्रियां | तो समर्थ होगी नहीं फिर मतिज्ञान सब द्रव्योंको विषय करनेवाला है यह कथन अयुक्त है ? सो ठीक
नहीं । मतिज्ञान पदार्थोंके जाननेमें इंद्रिय और मन दोनोंकी अपेक्षा रखता है यद्यपि स्पर्शन आदि है इद्रियां धर्म अधर्म आदि अतींद्रिय द्रव्योंको विषय नहीं कर सकतीं परंतु नो इंद्रियावरण रूप कर्मकी P क्षयोपशम रूप विशुद्धि विशिष्ट मनके धर्म अधर्म आदि अतींद्रिय द्रव्य भी विषय हो सकते हैं । इसलिये - मनका अवलंबन रखनेवाला मतिज्ञान जब धर्म अधर्म आदिको विषय कर सकता है तब उपर्युक्त शंकाको ६ स्थान नहीं मिल सकता । यदि मतिज्ञानकी प्रवृचि धर्म अधर्म आदि अतींद्रिय पदार्थोंमें नहीं होती,
दाथों में ही होती तो श्रतज्ञानके साथ मतिज्ञानका उल्लेख न कर एक मात्र रूपी व्यको विषय करनेवाले अवधिज्ञानके साथ उल्लेख करते परंतु वैसा नहीं किया इसलिये स्पष्ट सिद्ध है कि मतिज्ञान 6 ऐंद्रिय और अतींद्रिय दोनों प्रकारके पदार्थोंको विषय करता है और उनमें अतींद्रिय पदार्थों को जानना है उसका मन इंद्रियकी अपेक्षा है । सर्वार्थसिद्धिकार भगवान पूज्यपादने भी यह लिखा है___ "धर्मास्तिकायादीन्यतींद्रियाणि तेषु मतिज्ञानं न प्रवर्तते, अतः सर्व द्रव्येषु मतिज्ञानं वर्तते इत्ययुक्तं । नैष दोषः । अनिद्रियाख्यं करणमस्ति तदालंबनो नो इंद्रियावरणक्षयोपशम लब्धिपूर्वक उपयोगोऽवग्रहादि रूपः प्रागेवोपजायते ततस्तत्पूर्व श्रुतज्ञानं तद्विषयेषु स्वयोग्येषु व्याप्रियते"। अर्थात् धर्मास्तिकाय आदि-अतींद्रिय पदार्थ हैं । इंद्रियों की अपेक्षा रखनेवाले मतिज्ञानकी उनके जाननेमें