Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
है द्वारा वाहर निकले हुए आत्माके प्रदेशोंका गमन पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण उर्ध्व और अधः इन छहौ . अध्याप P दिशाओंमें माना गया है इसलिये वेदना कषाय आदिक पांच षड्दिक हैं तथा इन पांच समुद्घातोंके । १:
द्वारा जो आत्माके प्रदेश वाहर निकलते हैं उन सबका भी श्रेणी-दिशाओंमें, ही गमन माना है विदिशाB ऑमें नहीं होता। ६ वेदना कषाय मारणांतिक तैजस वैक्रियिक और आहारक इन छह समुद्घातोंका काल तो संख्यात * समय है और केवलिसमुद्घातका काल आठ समय है क्योंकि चार समयोंमें दंड कपाट प्रतर और लोक
पूरण ये चार अवस्था होती हैं और चार समयोंमें प्रतर कपाट दंड और फिरसे शरीरमें प्रवेश करना हैं ये चार अवस्था होती हैं इस प्रकार केवलि समुद्धातमें आठ समयका काल लगता है। है । सूर्य चंद्रमा ग्रह नक्षत्र और तारागणके संचार उपपाद गति और जो विपरीत-उलटे गमनफलों 2 का जहांपर वर्णन है, शकुनोंका निरूपण है और अहंत वलदेव वासुदेव चक्रवर्ती आदिके गर्भ जन्म ॐ तप आदि महा कल्याणोंका जहाँपर वर्णन है वह कल्याणनामधेयपूर्व है। जिस पूर्वमें कायचिकित्सादि
अष्टांग आयुर्वेद, पृथ्वी, जल आदि भूतोंका कार्य सर्प आदि जंगम जीवोंके गति आदिका वर्णन और श्वासोच्छ्वासका विभाग विस्तारसे वर्णित है वह प्राणावाय पूर्व है। जहांपर वहचर प्रकारकी लेखन आदि कला, चौसठि प्रकारके स्त्रियोंके गुण, शिल्प, काव्यके गुण दोष, छन्दोंकी रचना एवं क्रिया तथा उन क्रियाओंके फलोंके उपभोग करनेवालोंका निरूपण है वह क्रियाविशाल पूर्व है और आठ प्रकारके व्यवहार, चार प्रकारके बीज, परिकर्मराशिका विभाग और समस्त श्रुतकी संपचिका जहांपर निरूपण ३७० है वह लोकविंदुसार है। विशेष
MERRUPEECHEMESTERE
P
SPlarke
REECREG