Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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। मतमें सन्निकर्ष प्रमाण माना गया है इसलिये जिन मातिज्ञान आदि ज्ञानों के नामका ऊपर उल्लेख किया K गया है वे ही प्रमाण हैं यह बात बतलानेकेलिये सूत्रकार सूत्र कहते हैं
तत्प्रमाणे ॥१०॥ ___मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दो ज्ञान परोक्ष और शेष ज्ञान प्रत्यक्ष हैं यह आगेके सूत्रोंसे कहा जायगा वे प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही प्रकारके ज्ञान प्रमाण हैं। प्रमाण शब्दका अर्थ क्या है ? यह बतलाते हैं
भावकर्तृकरणत्वोपपत्तेः प्रमाणशब्दस्येच्छातोऽर्थाध्यवसायः॥१॥ प्रमाण शब्दके भाव कर्ता और करण तीनों अर्थ हैं। जिस समय प्रमाण शब्दका भाव अर्थ किया | * जायगा उस समय उसकी पदार्थों के जानने रूप व्यापारमें प्रवृत्ति न होने के कारण केवल उसका स्वरूप कहा 18
जायगा और वह प्रमा-प्रमिति (अज्ञानकी निवृत्ति) स्वरूप ही होगा इसलिये भाव साधन अर्थमें प्रमाण हूँ & शब्दका अर्थ प्रमा है एवं प्रमाणमात्रं प्रमाणं' यह प्रमाण शब्दकी भाव साधन व्युत्पचि है। जिससमय कर्ता | * अर्थ माना जायगा उससमय पदार्थों का भलेप्रकार जाननारूप शक्तिका आधार प्रमाण माना जायगा ||
और 'प्रमिणोति प्रमेयमिति प्रमाणं' पदार्थोंको यथार्थरूपसे जो जाने वह प्रमाण है यह उसकी व्युत्पचि होगी तथा जिप्त समय प्रमाण शब्दका करण अर्थ माना जायगा उससमय आत्मा और ज्ञेय पदार्थों | को एवं प्रमाण और ज्ञेय पदार्थोंको कथंचित् भिन्न कहना पडेगा और 'प्रमिणोत्यनेनेति प्रमाणे जिस के द्वारा आत्मा पदार्थोको जाने वह प्रमाण है। यह व्युत्पचि होगी। इसप्रकार प्रमाण शब्दके भाव कर्ता
१ विषयेद्रियसम्बन्धो व्यापारः सोऽपि पविषः । पदार्थ और इंद्रियोंका जो संबंध हो जाना है वह सन्निकर्ष है। एकावलीकारिका ६१।
BREDIRECORRESPARRESOLAGAAVATA.
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बारक