Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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योंका वर्णन और निराकरण है । मिथ्यादृष्टियोंके सामान्यतया तीनसो त्रेसठि भेद हैं परंतु मूलभेद , ॐ क्रियावादी अक्रियावादी अज्ञानवादी और विनयवादी ये चार हैं। उनमें कौत्कल १ कांठेविद्धि २४
कौशिक ३ हरिश्मश्रुमांपिक ५ रोमश ६ हारीत ७ मुंड ८ आश्वलायन ९ आदि एकसौ अस्सी भेद क्रियावादियोंके हैं । मारीचकुमार १ कपिल २ उलूक ३ गार्य ४ व्याघ्रभूति ५ वाड्वल ६ हूँ माठर ७ मौद्गलायन ८ आदि चौरासी ८४ भेद अक्रियावादियोंके हैं। शाकल्प १ वाल्कल २ कुथुमि ३ टू सात्यमुनि ४ नारायण ५ कठ ६ माध्यंदिन ७ मौद पैप्पलाद ९ वादरायण १० आंबुष्टीकृत ११ दैत्य है कायन १२ वसु १३ जैमिनि आदि सडसडि भेद अज्ञानवादियोंके हैं। एवं वशिष्ठ १ पारासर २ जतुकर्ण ३ । वाल्मीकि रोमर्षि ५ सत्यदच ६ व्यास ७ एलापुत्र ८ उपमन्यव ९ इंद्रदच १० अयस्थूण ११ आदि
बत्तीस भेद वैनयिक मिथ्यादृष्टियोंके हैं । इन सबको आपसमें जोडने पर तीनसौ त्रेसठि भेद होते हैं ए दृष्टिवाद अंगमें विस्तारसे इनके स्वरूपका निरूपण किया गया है और खंडन भी किया गया है इस ( अंगके पदोंका प्रमाण एकसौ आठ करोड अडसठि लाख छप्पन हजार पांच है। विशेष- .
जिन क्रियावादी आदिके कुछ नामोंका उल्लेख किया है वे सब उन उन मतोंके प्रवर्तक हैं परंतु कैसा है माननेसे क्रियावादी आदिके उतने उतने मेद हो जाते हैं? वह इस प्रकार है-नियति खभाव २ काल ३ है दैव ४ और पौरुष ५ इन पांचका खतः परतः नित्य और अनित्य इन चारसे गुणा करने पर बीस भेद 1 हो जाते हैं। उन बीस भेदोंके नौ पदार्थों के साथ गुणा करने पर एक सौ अस्सी भेद हो जाते हैं। वहां 15 पर कोई क्रियावादी तो नियतिसे (नियमानुकूल) कोई परतः मानता है। कोई नित्य मानता है कोई । अनित्य । कोई जीवको स्वभावसे स्वतः मानता है किसीका सिद्धांत है, कि जीव स्वभावसे परत है।