Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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माता १ पिता २ देव ३ नृप जाति ५ बालक ६ वृद्ध तपस्वी इन आठोंका मन वचन काय और दान इन चारसे गुणा करने पर वैनयिक मिथ्यादृष्टिके बत्तीस सिद्धांत भेद हो जाते हैं। विनयॐ वादियोंका सदा यह अभिपाय रहता है कि माता पिता आदि आठोंका मन वचन कायसे आदर सत्कार ६ करना चाहिए और उन्हें दान देकर संतुष्ट करना चाहिए। इस प्रकार ये तीनसै त्रेसठि मतोंका वर्णन हूँ और खंडन दृष्टिवादमें पाया जाता है। इन मतोंके तीनसै त्रेसठि भेद होनेके कारण उनके माननेवाले 5
भी तीनस त्रेसठि हैं। ___ दृष्टिवादके परिकर्म १ सूत्र २ प्रथमानुयोग ३ पूर्वगत ४ और चूलिका ५ये पांच भेद हैं। उनमें भी पूर्वगत-उत्पाद पूर्व १ अग्रायणी पूर्व २ वीर्यप्रवाद पूर्व ३ अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व ४ ज्ञानप्रवाद पूर्व ५९ सत्यप्रवाद पूर्व ६ आत्मप्रवाद पूर्व ७ कर्मप्रवाद पूर्व प्रत्याख्यान नामधेय पूर्व ९ विद्यानुवाद पूर्व १० कल्याणनामधेय पूर्व ११ प्रणवाय पूर्व १२ क्रियाविशाल पूर्व १३ लोकविंदुसार पूर्व १४ ये चौदह भेद हैं। ___ काल पुद्गल जीव आदिके जहां जैसे पर्याय उत्पन्न हों उनका उसी रूपसे वर्णन करना उत्पाद पूर्व है 15 जिन क्रियावाद आदिका उल्लेख किया गया है उनमें किसरूपसे कौन कौन क्रियावाद आदि होते हैं | है ऐसी प्रक्रियाका नाम अग्रायणी है। जिसमें आचार आदि बारह अंगोंका समवाय-समानता और 11 विषयका वर्णन हो वह अप्रायणीपूर्व है । छद्मस्थ (अल्पज्ञानी) और केवलियोंकी शक्ति, सुरेंद्र दैत्येंद्र से 17 नरेंद्र चक्रवर्ती और बलदेवोंकी ऋद्धिका जहांपर वर्णन हो एवं सम्यक्त्वके लक्षणका जहांपर कथन हो
वह वीर्यप्रवाद है। पांचों अस्तिकायोंके विषय पदार्य और नयोंके विषय पदार्थोंका जहाँपर अनेक पर्यायों - के द्वारा यह है, यह नहीं है, इत्यादिरूपसे वर्णन हो वह अस्तिनास्तिप्रवाद है । अथवा पर्यायार्थिक नयं
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