Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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5 उपासकाध्ययन अंगमें श्रावकोंकी सम्यग्दर्शन आदि ग्यारह प्रतिमासंबंधी व्रत गुण शील आचार तथा 9 दूसरे क्रियाकांड और उनके मंत्रादिकोंका सविस्तर वर्णन किया है । इसकी पदसंख्या ग्यारह लाख
सचर हजार है अंतकृद्दश अंगमें प्रत्येक तीर्थकरके समयमें जिन दश दश मुनियोंने दारुण उपसर्ग सह समस्त कर्मोंका नाशकर मोक्ष लाभ किया है उनका वर्णन है । उनमें भगवान वर्धमानके समय में तो नमिर मतंग २ सोमिल ३ रामपुत्र ४ सुदर्शन ५ यम ६ वाल्मीक ७ वलीक ( निष्कंबल ९ पालांबष्ठ १०
इन दश मुनियोंने घोर उपसर्ग सह समस्त कर्मोंका नाशकर मोक्षलाभ किया है इसीतरह ऋषभ आदि * तेईस तीर्थकरोंमें हर एकके तार्थमें दश दश मुनियोंको घोर उपसर्ग सहकर समस्त कर्मोंका नाशकर | - मोक्ष लाभ करनेवाला समझ लेना चाहिये । अथवा संसारका अंत करनेवाले महापुरुषोंकी व्यवस्था ५ का जिसमें वर्णन हो वह अतकृद्दश है। वे संसारका अंत करनेवाले अहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय | १ और मुनि पांचो परमेष्ठी हैं इसलिये अंतकृद्दशमें अहंत आदि पांचो परमेष्ठियोंका भी वर्णन है । इसके | * पदोका प्रमाण तेईस लाख अट्ठाईस हजार है। अनुचरोपपादिकदशांगमें प्रत्येक तीर्थकरके तीर्थमें | हूँ होनेवाले उन दश दश प्रकारके मुनियोंका वर्णन है जिन्होंने देश प्रकारका घोर उपसर्ग सहकर विजय है वैजयंत जयंत अपराजित और सर्वार्थसिद्धि नामके पांचो अनुचर विमानोंमें जाकर जन्म लिया है।
भगवान वर्धमान स्वामीके तीर्थमें ऋषिदास १धन्य २ सुनक्षत्र३ कार्तिक ४ नंद ५ नंदन ६ शालिभद्र ७ अभय ८ वारिषण ९और चिलातपुत्र १० इन दश प्रकारके मुनियोंने घोर उपसर्ग सहकर विजय वैज
१ पुरुष स्त्री नपुंसक ये तीन प्रकारके मनुष्यकृत , पुरुष स्त्री नपुंसक तीन प्रकारके तिर्यचकृत, पुरुष स्त्री दो प्रकारके देवकृत शरीरका उपसर्ग १ और भीत पत्थर भादिका पढजाना उपसर्ग १ ये दश उपसर्ग हैं। हरिवंशपुराण भाषा पृष्ठ १४५। .
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