Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
*
RECECREATER
*
कर्मके क्षयोपशमकी अपेक्षा मतिज्ञान होगा उसीके अनुसार श्रुतज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे श्रुतज्ञान माना जायगा इसलिये कारण-मतिज्ञानके भेदसे कार्य श्रुतज्ञानका भेद है। इस रीतिसे सबमें | एकसा श्रुतज्ञान न होकर हीनाधिकभावसे है यह वात सिद्ध हो चुकी।
.: श्रुताच्छूतप्रतिपत्तलक्षणाव्याप्तिरिति चेन्न तस्योपचारतो मतित्वसिद्धेः ॥१०॥
जिस पुरुषको घट पदार्थका संकेत मालूम है उसको पहिले शब्दस्वरूप परिणत पुद्गलस्कंधोंसे वर्ण पद | है वाक्य आदि स्वरूप जो घटका ज्ञान होता है वह मतिज्ञान है और उसके बाद 'घट मिट्टोका होता है,8 है. उसका ऐसा आकार होता है' इत्यादि नेत्र आदि इंद्रियोंके विषयका अविनाभावी जो विशेष ज्ञान होता है
है वह श्रुतज्ञान है । इस श्रुतज्ञानके विषयभूत घटसे उसको जलधारण आदिका जो ज्ञान होता है वह 10 B भी श्रुतज्ञान है। इसी तरह जिस पुरुषको धूम पदार्थका संकेत मालूम है उसका धूम शब्दका सुनना ६ मतिज्ञान है और उसके बाद धूम अग्निसे उत्पन्न होता है और वह काला काला होता है' इत्यादि रूप ६ जो नेत्रादि इंद्रियों के विषयका अविनाभावी विशिष्ट ज्ञान है वह श्रुतज्ञान है । इस श्रुतज्ञानके विषयभूत हूँ धूमसे जो आग्निका ज्ञान होता है वह भी श्रुतज्ञान है इस गीतिसे जब श्रुतज्ञानसे भी श्रुतज्ञानकी उत्पचि | 3 हूँ दीख पडती है तब मतिज्ञानपूर्वक ही श्रुतज्ञान होता है यह वात अयुक्त है ? सो ठीक नहीं । जहाँपर टू
मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान होने के बाद जो उस श्रुतज्ञानसे श्रुतज्ञान होता है वहांपर पहिले श्रुतज्ञानको | उपचारसे मतिज्ञान ही माना है इसलिये श्रुतज्ञानको मतिज्ञानपूर्वक कहना अयुक्त नहीं। अथवा मति
पूर्व' यहांपर पूर्व शब्दका व्यवहित अर्थ है इसलिये जिस तरह मथुरासे पटना पूर्व दिशामें है वहांपर ॐ अनेक शहर गांव आदिके व्यवधान रहते भी पटनाको पूर्व ही दिशामें माना जाता है उसी तरह श्रुत
*
**
**