Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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मध्याम
स्वलक्षणको विषय करता है और उस स्वलक्षणको असाधारण धर्म माना है उसमें यह घट है वा यइ पट
और मठ है इस प्रकारका कैसा भी विकल्प नहीं रहता तथा अनुमान सामान्यको विषय करता है। यह 3 सामान्य स्वलक्षणसे ठीक विपरीत है-इसमें वह अमुक पदार्थ है तो वह अमुक पदार्थ है इस तरहका ६ भेद रहता है यदि मिथ्या पदार्थको सत्य मानना प्रमाणाभास और सत्यको सत्य ही मानना प्रमाण इस६ तरह मिथ्या पदार्थ और सत्य पदार्थों की भी कल्पना करनी पडेगी तो पे जो प्रत्यक्ष और अनुमानकी हूँ सिद्धिकेलिये विशेष और सामान्यके भेदसे दो ही पदार्थ माने हैं वह मानना व्याहत हो जायगा क्योंकि
प्रमाण और प्रमाणाभासकी सिद्धि के लिए सामान्य और विशेषसे अतिरिक्त मिथ्या और सत्य पदार्थोंकी छु भी कल्पना करनी पडती है इसरीतिसे जब विज्ञानके सिवाय कोई पदार्थ सिद्ध नहीं होता तब एक ही है। विज्ञानमें प्रमाण और प्रमाणाभासरूप भेदोंकी कल्पना नहीं की जा सकती। और भी यह बात है कि- है।
विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध विज्ञानके सिवाय अन्य समस्त पदार्थों को असत् भी विशेषरूपसे नहीं कह । सकता क्योंकि पदार्थों के अभावसे उनका असत्त्व भिन्नरूपसे सिद्ध नहीं हो सकता किंतु घट पट आदि असत्त्वके संबंधी पदार्थोंके रहते ही यह घटका असत्व है यह पटका असत्व है इत्यादि भिन्नरूपसे असत सिद्ध होता है इसलिये विज्ञानमात्र तत्व मानकर समस्त पदार्थों को असत् कइना वौद्धका युक्तियुक्त नहीं
माना जा सकता। यदि यहां पर यह कहा जाय कि संबंधी घट पट आदि पदार्थों के अभाव रहने पर हूँ हैं ही उनके विशेषोंका अभाव कहा जा सकता है उनके विद्यमान रहते नहीं। सत्व भी घट पट आदिका 2 विशेष है इसलिये घट पट आदिके अभावमें उसका अभाव भी सिद्ध है कोई दोष नहीं ? सो भी ठीक
नहीं। यदि संबंधियोंके अभावमें उनके विशेषोंका अभाव माना जायगा तब घट पट आदि पदार्थों के
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