Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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आदि अनांतर नहीं किंतु भिन्न भिन्न ज्ञान हैं यह एकांतरूपसे नहीं कहा जा सकता। यदि यहांपर, भाषा हूँ यह शंका की जाय कि२८७ .
पर्यायशब्दो लक्षणं नेति चेन्न ततोऽनन्यत्वात् ॥७॥ ओष्ण्याग्निवत् ॥८॥ ___मति आदिको मतिज्ञानका पर्याय बतलाया है और उन्हें मतिज्ञानका लक्षणस्वरूप माना है परंतु
वह बात ठीक नहीं जिसतरह मनुष्यकी मानव मर्त्य नर आदि अनेक पर्यायें है परंतु वे लक्षण नहीं हो . : सकते उसीतरह मति आदि भी मतिज्ञानके पर्यायांतर हैं इसलिये ये भी मतिज्ञानके लक्षण नहीं कहे जा
सकते? सो नहीं। जिसतरह उष्णता अग्निकी पर्याय है और पर्यायी-अग्निसे आभिन्न है इसलिये हूँ अग्निका लक्षण कही जाती है उसीतरह मतिज्ञानके पर्याय जो मति आदिक हैं वे भी अपने पर्यायी है है मतिज्ञानसे अभिन्न है इसलिये उन्हें मतिज्ञानका लक्षण मानना अयुक्त नहीं कहा जा सकता इसरीतिसे है है जो पर्याय अपने पर्यायी पदार्थोंसे अभिन्न हैं उन्हें लक्षण माननेमें किसीप्रकारकी आपचि नहीं। .
___अथवा इस रूपसे भी पर्यायी पदार्थोंसे अभिन्न पर्याय लक्षण कहे जाते हैं । जिसतरह-मनुष्य ,
मर्त्य मनुज मानव आदि पर्याय मनुष्यके सिवाय घट आदि द्रव्यको न होनेसे असाधारण और मनुष्यसे 8 ३ अभिन्न हैं इसलिये वे मनुष्यके लक्षण हैं। यदि मनुष्य आदि पर्यायोंको मनुष्यका लक्षण न माना हूँ
जायगा तो स्वस्वरूपके अभावमें मनुष्यका अभाव ही हो जायगा क्योंकि मनुष्य मर्त्य आदि पर्यायव- हूँ रूप लक्षणके सिवाय मनुष्यका अन्य कोई लक्षण नहीं। मनुष्य पदार्थका अभाव ते लिये मनुष्य आदि पर्यायोंको मनुष्यका लक्षण मानना ही पड़ेगा उसीतरह मतिस्मृति आदिपर्याय मति है ज्ञानके सिवाय अन्य ज्ञानकी न होनेके कारण असाधारण और मतिज्ञानसे अभिन्न है इसलिये वे मति
है मतिज्ञा अपने पाया पर्यायी पदावा घट आदि
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अथवा इस
आभन्न ह उन्हें लक्षण
हा कहा जा सकता इसीतिर
पर्यायोंका भय मत्र्य आदि
हो जायपदार्थका स्मृति मिलिये ३ मा
लिये मनुष्य आवाय मनुष्यका मनुष्यका अभाव मनुष्य आदिवान होनेसे असाधा जिसतरह-मन
दे पर्यायोंको मान्य कोई लक्षण नाजायगा क्योंकि
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