Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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त०रा० भाषा
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अर्थ - मध्यमा (बीचकी) अंगुली और प्रदेशिनी - अनामिका अर्थात् सबसे छोटी अंगुली के पास की अंगुली इन दोनों अंगुलियों में मध्यमा बडी और प्रदेशिनी छोटी मानी जाती है और दोनोंमें छोटे बडेका व्यवहार होता है तथा वीचकी अंगुलीकी अपेक्षा प्रदेशिनी छोटी है और प्रदेशिनीकी अपेक्षा बोचकी बडी है यह जो छोटे बडेका व्यवहार है वह अपेक्षासे है। जो लोग ज्ञानको एक समय में एक ही पदार्थको ग्रहण करनेवाला मानते हैं उनके मतमें ज्ञानके क्षणिक होनेसे अपेक्षा सिद्ध नहीं हो सकती क्योंकि अपेक्षाकी सिद्धि अनेक क्षणस्थायी ज्ञानके मानने पर ही अवलंबित है इसलिये ज्ञान एक समय में एक ही पदार्थका ग्रहण करनेवाला है यह वात अयुक्त है । तथा
संशयाभावप्रसंगात् ॥ ५ ॥
'स्थाणु है या पुरुष है ?" इसप्रकार अनेक पदार्थोंके अवलंबन करनेवाले ज्ञानको संशय माना है। जिनके मत में विज्ञान एक समयमें एक ही अर्थका ग्रहण करनेवाला माना गया है उनके मत में स्थाणु और पुरुष दोनों में एक किसीकी प्रतीति होगी दोनोंकी नहीं हो सकती क्योंकि एक ज्ञानसे दोनोंकी प्रतीति मान लेनेपर 'एक ज्ञान एक ही पदार्थको ग्रहण करता है' यह प्रतिज्ञावचन बाधित हो जाता है। | इसलिये उनके मत में यह स्थाणु है या पुरुष है ? ऐसा संशय नहीं हो सकता । यदि यहाँपर यह कहा जायगा कि - जिसतरह बंध्या (बांझ ) का पुत्र अवस्तु है इसलिये स्थाणुमें उसका संभव नहीं हो सकता उसी तरह स्थाणु पुरुषका मानना भी संभव नहीं माना जा सकता इसलिये स्थाणु में पुरुषकी प्रतीतिका होना असंभव होनेसे स्थाणु में पुरुषका संशय नहीं हो सकता ? तो वहां पर यह भी कहा जा सकता है। | कि पुरुषमें भी स्थाणु द्रव्यकी अपेक्षा नहीं इसलिये स्थाणुकी असंभवतासे पुरुषमें भी स्थाणुका संशय नहीं
-अध्या
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