Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
में स्वरसंचार नहीं किया गया है कि किस स्वर पर गाया जायगा उसके.पहिले ही केवल उन बाजोंके गाये जाने वाले स्वरके मिलाप होते ही जिस समय आत्माको यह ज्ञान हो जाता है कि आप इस स्वर पर बाजा बजावेंगे' उस समय अनुक्त पदार्थका अवग्रह होता है और बाजों द्वारा उस स्वरके गाये जाने पर उस स्वरका जानना उक्त पदार्थका अवग्रह कहा जाता है। ___संक्लेश परिणामोंसे रहित यथायोग्य श्रोत्रंद्रियावरण आदि कर्मोंकी क्षयोपशम आदि विशुद्धिसे परिणत आत्माके जिसप्रकार प्रथम समयमें शब्दका ग्रहण हुआ है उसी प्रकार निश्चल रूपसे कुछ काल ग्रहण बना रहना, उसमें किंचिन्मात्र भो कम बढती न होना ध्रुव पदार्थका अवग्रह है और बार बार होनेवाले संक्लेश परिणाम और विशुद्धि परिणामरूप कारणोंसे युक्त आत्माके जिस समय श्रोत्रंद्रिय आदि कर्मोंका कुछ आवरण भी होता रहता है और क्षयोपशम भी होता रहता है इस तरह श्रोत्रंद्रियावरण आदि कर्मोंकी क्षयोपशमरूप विशुद्धिकी कुछ प्रकर्ष और कुछ अप्रकर्ष दशा रहती है उस
समय हीनता और अधिकतासे जाननेके कारण कुछ चल विचलपना रहता है इसलिए उस प्रकारका हूँ अवग्रह अध्रुव अवग्रह कहा जाता है तथा कभी तत आदि बहुतसे शब्दोंका ग्रहण करना कभी थोडेका
कभी बहुत प्रकारके शब्दोंका ग्रहण करना कभी एक प्रकारकेका, कभी जल्दी शब्दको ग्रहण करना,
कभी देरीसे करना, कभी अनिःसृत शब्दका ग्रहण करना, कभी निःसृत शब्दका ग्रहण करना, कभी 3 उक्त शब्दका ग्रहण करना, कभी अनुक्त शब्दका ग्रहण करना यह जो चल विचलपनेसे शब्दका ग्रहण करना है वह सब उसी अध्रुवावग्रहका विषय है । शंका
बहुत शब्दोंके अवग्रहमें भी तत आदि शब्दोंका ग्रहण माना है और बहुत प्रकारके शब्दोंके अव
PRINCIRBALEKACIECOLORIES
ARSA-ALIGIONEEM