Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
बानबे भेद हो जाते हैं। यदि उन्हीं चौबीस भेदोंका बहु आदि बारहके साथ गुणा किया जाय तो दौ| सौ अठासी, यदि अट्ठाईस भेदोंका बहु आदि बारहकै साथ गुणा किया जाय तो तीनसौ छत्तीस और 2 यदि बत्तीस भेदोंका बहु आदि बारहके साथ गुणा किया जाय तो तीनसौ चौरासी भेद हो जाते है। शंका__व्यंजनावग्रहमें अव्यक्त पदार्थका अवग्रह माना है। बहु आदि पदार्थ व्यक्त हैं इसलिये उनका || व्यंजनावग्रह नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं । जब अव्यक्तका ग्रहण व्यंजनावग्रह माना गया है तब बहु आदि भेद भी अव्यक्त हो सकते हैं इसलिये उनका व्यंजनावग्रह होना असंभव नहीं । यदि यह कदाचित् और भी शंका की जाय कि अनिःसृतमें व्यंजनावग्रह कैसे होगा ? क्योंकि वहांपर जो
पदार्थके अवयव बाहर निकले हुए हैं वे व्यक्त ही हैं अव्यक्त नहीं। यहांपर यह नहीं कहा जा सकता कि । बाहर निकले हुए भी जो पुद्गल सूक्ष्म हैं और सूक्ष्मतासे दीख नहीं पडते वहां व्यंजनावग्रह हो सकता
है ? क्योंकि वहां जो निकले हुए पुद्गलके अवयव हरएकको नहीं दीख पडते हैं उनके न दीखने में | ६ सूक्ष्मता कारण है-सूक्ष्म होनेसे वे दृष्टिगोचर नहीं हो सकते परंतु उनको अव्यक्त नहीं कहा जा सकता हूँ क्योंकि वे देखे जा सकते हैं इसलिये अनिःसृतका व्यंजनावग्रह बाधित है । सो ठीक नहीं हम भी उनका || है व्यंजनावग्रह नहीं मानते किंतु जो वाहर निकले हुए पदार्थ इंद्रियोंके स्थानमें आकर अवगाहन करते हैं।
ठहरते हैं और व्यक्त नहीं होते उनका व्यंजनावग्रह होता है । यद्यपि चक्षु और मनके स्थानपर पदार्थों का अवगाहन होना बाधित है क्योंकि वहां अवगाहन हो नहीं सकता उनसे व्यंजनावग्रह माना ही नहीं है ३५५ गया किंतु उनके सिवाय चार इंद्रियोंसे व्यंजनावग्रह माना है और उनके स्थानमें पदार्थों का अवगाहन
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