Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
कारण बतलाव लिद करने को भेदसे जन्मवरूप इसावियानाकी उत्पत्ति किन
'मति स्मृति आदि लक्षण स्वरूप मतिज्ञान अच्छीतरह निश्चित हो चुका अब उसकी उत्पत्ति किन भाषा किन कारणोंसे होती है इस बातको सूचित करनेकोलिए सूत्रकारने 'तर्दिद्रियानिद्रियानिमिर्च' इस सूत्रका 8
₹ उल्लेख किया है । अथवा सभी ज्ञान आत्माकी पर्याय है-आत्मस्वरूप हैं इसलिये आत्मस्वरूपकी अवि. है शेषतासे वे सब एक न कहाये जावे किंतु निमिचके भेदसे जुदे जुदे ही माने जावें इस बातको हृदयमें है है रख सब ज्ञानोंसे मतिज्ञानको भिन्न सिद्ध करनेकेलिए सूत्रकारने 'तदिंद्रियानिद्रियनिमि' इस सूत्रसे है। , मतिज्ञानके निमिच-कारण बतलाये हैं
तदिद्रियानिद्रियनिमित्तं ॥ १४॥ जिस मतिज्ञानका ऊपर वर्णन कर आए हैं उस मतिज्ञानकी उत्पति पांच इंद्रिय और मनसे होती ६ है। वार्तिककार इंद्रिय शन्दका अर्थ बतलाते हैं
__इंद्रस्यात्मनोऽर्थोपलब्धिलिंगमिद्रियं ॥१॥ इंद्रका अर्थ आत्मा है। ज्ञानावरण आदि कर्मोंसे मलिन रहनेके कारण आत्मा जब स्वयं पदार्थों हूँ को नहीं जान सकता उससमय उसे पदार्थोंके जनावनेमें जो कारण है वह इंद्रिय पदार्थ कहा जाता है है। है क्योंकि ज्ञानावरण आदि कोंके तीव्र क्षयोपशम और क्षय रहने के कारण प्रत्यक्ष ज्ञानोंमें इंद्रियोंकी है
आवश्यकता नहीं पडती वहांपर स्वयं आत्मा पदार्थोंको जानने लग जाता है परन्तु परोक्ष ज्ञान, इंद्रियों 8 की सहायताके विना नहीं हो सकता-उस अवस्थामें इंद्रियों की सहायतासे ही आत्मा पदार्थोको जान | 1% सकता है इसलिये कर्मोसे मलिन आत्माको पदार्थोंके जनावनेमें जो पदार्थ कारण है उसे इंद्रिय माना
है। अब अनिद्रिय शब्दका अर्थ बतलाते हैं
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