Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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=जान सकता। क्षणिकवादी बौद्धोंके मतमें ज्ञान पदार्थ एक क्षण रहकर विनश जानेवाला है और हूँ
प्रत्यर्थवशवर्ती है अर्थात् एक ज्ञान एक ही पदार्थको विषये करता है इसलिये वह कर्तृसाधन और करण है आदि साधन इन दोनों धर्मोको विषय नहीं कर सकता । इस रीतिसे यह कर्तृसाधन है, करण आदि है साधन नहीं। इस प्रकारके विशेष ज्ञानके न होनेसे 'जानातीति ज्ञान' जो जाने वह ज्ञान है इस रूपसे ज्ञानको कर्तृसाधन नहीं कहा जा सकता। इसप्रकार यह वात निर्विवाद सिद्ध हो चुकी कि यदिआत्मा पदार्थ नहीं माना जायगा ज्ञान ही माना जायगा तो ज्ञान कर्ता वा करण आदि न हो सकेगा। ___ अस्तित्वेप्यविक्रियस्य तदभावोऽनभिसंबंधात ॥ ११ ॥ पृथगात्मलाभाभावात् ॥ १२ ॥
नैयायिक और वैशेषिकोंका सिद्धान्त है कि जो पदार्थ आत्मा इंद्रिय मन और पदार्थके संबंधसे उत्पन्न होता है वह भिन्न माना जाता है ज्ञान पदार्थ, आत्मा इंद्रिय मन और पदार्थके संबंधसे उत्पन्न होता है इसलिये वह आत्मासे भिन्न है तथा आत्मा पदार्थ निष्क्रिय है । कोई भी उसमें क्रिया नहीं। यद्यपि ऐसा माननेसे नैयायिक आत्मा पदार्थ स्वीकार करते हैं तथापि ज्ञान उनके मतमें करण नहीं
माना जा सकता क्योंकि परशुसे देवदत्त काष्ठ छेदता है यहांपर देवदचसे भिन्न परशु तीक्ष्ण भारी और ६ कठिन आदि अपने विशेष स्वरूपोंसे प्रत्यक्ष सिद्ध है और वह करण कहा जाता है । यदि ज्ञान आत्मों
से भिन्न माना जायगा तो उसका भी कुछ विशेष स्वरूप प्रसिद्ध होना चाहिये । सो प्रसिद्ध है नहीं। है इसलिये वह करण नहीं हो सकता इस रीतिसे निष्क्रिय आत्माको मान भी लिया जाय और जान उस है का गुण भी स्वीकार कर लिया जाय तो भी सर्वथा भिन्न होनेसे उसका आत्माके साथ किसी प्रकार
संबंध न रहनेके कारण वह करण आदि नहीं कहा जा सकता। और भी यह वात है कि
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