Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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। जायगा तो निर्देश वचनसे जिनका पूर्व सूत्रोंसे अधिकार चला आरहा है ऐसे सम्यग्दर्शन आदिवा 7 जीव आदिका ही अस्तित्व जाना जा सकेगा किंतु जीवकी क्रोध मान आदि पर्याय और पुद्गलकी मात्र
वर्ण गंध आदि वा घट पट आदि पर्याय जिनका कि अधिकार नहीं आ रहा है उनका अस्तित्व न 8 । जाना जा सकेगा। सत् शब्दसे क्रोध आदि वा वर्ण गंध घट पद आदि सबका अस्तित्व जान लिया हूँ जाता है इसलिये सत् शब्दका ग्रहण करना व्यर्थ नहीं। यदि कदाचित् यह शंका हो कि
___ अनधिकृतत्वादिति चेन्न सामर्थ्यात् ॥१४॥ जिनका अधिकार चला आ रहा है जैसे कि सम्यग्दर्शन आदि उन्हींके अस्तित्वका सत्-शब्दसे २ । ज्ञान होना ठीक है किंतु जिनका अधिकार नहीं आ रहा है जैसे जीवकी क्रोध आदि पर्याय वा अजीव
की वर्ण गंध घट पट आदि पर्याय उनका सत् शब्दसे ज्ञान नहीं हो सकता। जब यह बात निश्चित हो 5 चुकी कि अधिकृत पदार्थों का ही सत् शब्दसे ज्ञान हो सकता है अनधिकृतोंका नहीं तब निर्देशके कहने है हीसे उनका ज्ञान हो जायगा सत् शब्दका उल्लेख करना व्यर्थ ही है। सो ठीक नहीं। पदार्थोंकी सामर्थ्य ५ अचिंत्य है । कोई भी दृढरूपसे यह नहीं कह सकता कि अमुक पदार्थकी सामर्थ्य इतनी ही है। है सत् शब्दके अंदर भी यह सामर्थ्य है कि वह अनधिकृत पदार्थोंके भी आस्तित्वका ज्ञान करा सकता है है इसलिये कोष आदि वा वर्ण शब्द आदि अनधिकृत पदार्थों के अखिलके ज्ञान करानेके लिये सत् शब्द का सूत्रमें ग्रहण करना सार्थक ही है व्यर्थ नहीं।
विधानग्रहणात संख्यासिद्धिरिति चेन्न भेदगणनार्थत्वात ॥१५॥ निर्देशस्वामित्वेत्यादि सूत्रमें विधान शब्द कह आए हैं । विधानका अर्थ भेद कहना है।
APERS
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