Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
भाषा
5 भोजन ये पांच समिति, उत्तमक्षमा मार्दव आजव शौच सत्य संयम तप त्याग आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य । ये दश धर्म, अनित्य अशरण संसार एकत्व अन्यत्व अशुचित्व आस्रव संवर निर्जरालोक बोधिदुर्लभ और
धर्मानुप्रेक्षा ये बारह अनुप्रेक्षा, क्षुधा तृषा शीत उष्ण दंशमशक नाग्न्य अरतिनी चर्या निषद्या शय्या में आक्रोश बध याचना अलाभ रोग तृणस्पर्श मल सत्कारपुरस्कार प्रज्ञा अज्ञान और अदर्शन ये बाईस ई परीषद, अनशन अवमोदर्य वृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्तशय्यासन और कायक्लेश ये छह वाह्य
तप एवं प्रायाधिच विनय वैयावृत्य स्वाध्याय व्युत्सर्ग और ध्यान ये छह अंतरंगतप, इसतरह बारह तप, आलोचना प्रतिक्रमण उभय (आलोचनाप्रतिक्रमण) विवेक व्युत्सर्ग तप छेद परिहार और उपस्थापना ये नौ प्रायश्चित्त, ज्ञान दर्शन चारित्र और उपचार ये चार विनय, आचार्य उपाध्याय तपस्वी शक्ष्य ग्लान गण कुल संघ साधु और मनोज्ञ इसतरह दश प्रकारके साधुओंकी सेवा टहल करना दश प्रकारका . वैयावृत्य, वाचना पृच्छना अनुप्रेक्षा आम्नाय और धर्मोपदेश यह पांच प्रकारका स्वाध्याय, वाह्य उपधि
और अंतरंग उपधिके मेदसे दो प्रकारका व्युत्सर्ग, अपायविचय उपायावचय जीवविचय आज्ञाविचय विपाकविचय अजीवविचय हेतुविचय विरागविचय भवविचय संस्थानविचय यह दश प्रकारका धर्मध्यान, पृथक्त्ववितर्क एकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती और व्युपरतक्रियानिवर्ती यह चार प्रकारका शुक्लध्यान इसतरह सब मिलकर एकसौ आठ प्रकारका संवरतत्व है । गुप्ति आदिका स्वरूप विस्तारसे नौवें अध्याय में वर्णित है। ____ स्वयमेव पाकसे वा तपके द्वारा होनेवाले पाकसे जिस कर्मकी सामर्थ्य क्षीण हो चुकी है वह निर्जरा 9 है.अथवा निर्जराका नाम निर्जराकी स्थापना आदि भी निर्जरा है यह निर्जराका निर्देश है । निर्जरा
A ROAURUS
१९६