Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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। निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः॥७॥ ' निर्देश स्वामित्व साधन अधिकरण स्थिति और विधानसे भी जीवादि पदार्थ वा सम्यग्दर्शन | || आदि पदार्थों का ज्ञान होता है।
निर्देशका अर्थ नाम मात्रका कहना है । स्वामित्वका अर्थ स्वामीपना है। साधनका अर्थ कारण | है। अधिकरणका अर्थ आधार है। स्थितिका अर्थ कालकी मर्यादा है और विधानका अर्थ भेद है। | विधानतः यहां तृतीयांत वा पंचम्यंत 'विधान' शब्दसे तस् प्रत्यय की गई है। सूत्र सोपस्कार होते हैं।
जिस शब्दका उल्लेख सूत्रमें न हो उसकी अनुवृत्ति पहिले सूत्रसे आ जाती है। निर्देश स्वामित्व आदि 18 सत्रमें अधिगम शब्दका उल्लेख नहीं है इसलिये 'प्रमाणनयैरधिगमः' इस सुत्रसे यहां अधिगम शब्द
अनुवृत्ति की गई है। निर्देशश्च स्वामित्वं च साधनं च अधिकरणं च स्थितिश्च विधानंच निर्देशस्वामित्व- | | साधनाधिकरणस्थितिविधानानि तैः, तेभ्यो वा निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः, यह यहां | समास समझ लेनी चाहिये अर्थात् निर्देश आदिके द्वारा जीव आदि पदार्थों वा सम्यग्दर्शन आदिका || ज्ञान होता है यह सूत्रका तात्पर्य है। यदि यहां पर यह कहा जाय कि 'का' अर्थ षष्ठीका होता है।
जीव आदि वा सम्यग्दर्शन आदिको अधिगम होता है यदि यह अर्थ किया जायगा तो 'जीवादीनां । सग्यग्दर्शनादीनां च' यह पाठ निर्देश स्वामित्व आदि सूत्रमें और भी रखना चाहिये। यदि इसका यह | उत्तर दिया जाय कि ऊपरके सूत्रोंमें उनका उल्लेख है इसलिये यहां उनकी अनुवृत्ति आ जायगी ? तो |8उसका समाधान यह होगा कि ऊपर तो प्रथमांत जीव आदि वा सम्यग्दर्शन आदिका उल्लेख किया गया ||७८१
| है षष्ठयंतोंका नहीं और यहांपर षष्ठ्यंत जीव आदिकी आवश्यकता है क्योंकि यहांपर 'जीव आदिका
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