Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
॥
है। भाता
रा०रा०
। हो सकेगा। इसलिये स्वस्वरूपके ग्रहण और परस्वरूपके त्यागसे ही वस्तुका वास्तविक वस्तुपना है यह | नियम वस्तुको यथार्थ सिद्धि में कारण है। ....
अथवा-नाम स्थापना द्रव्य और भाव जो चार निक्षेप ऊपर कहे जा चुके हैं उन चारोंमें षटके ई साथ संबंध करनेकी जिस किसीकी विवक्षा हो वह तो घटका स्वरूप और जो अवशेष अविवक्षित रह |
गए वे पररूप.समझने चाहिये जिस तरह घटका संबंध नाम निक्षेपके साथ विवक्षित है इसलिये घटका है। IPI नाम तो स्वरूप है और स्थापना आदि पररूप हैं अपने नाम स्वरूपसे घट है और स्थापना आदि स्वरूप II से वह नहीं है । स्थापना आदि परस्वरूपके समान अपने स्वरूप नामसे भी यदि घटका होना न भाना
जायगा तो वह पदार्थ नहीं हो सकेगा क्योंकि जिसका कोई स्वरूप ही नहीं वह पदार्थ नहीं कहा जा द सकता तथा जिस तरह स्वस्वरूप नामसे घटका होना माना है उस तरह परस्वरूप स्थापना आदिसे भी । यदि घटका होना मान लिया जायगा तो स्वरूप पररूपका कुछ भेद ही न रहेगा फिर घटके स्वरूप है। नामसे स्थापना आदि भिन्न न हो सकेंगे इस रूपसे नाम आदिका भेद ही न सिद्ध हो सकेगा। ___अथवा घट शब्द सामान्य है इसलिये उसके समान आकार धारण करनेवाले सब घटोंका घट
शब्दके कहनेसे ग्रहण हो जाता है उनमें किसी एक घटके ग्रहण करनेपर केवल उसी में रहनेवाले आकार | आदि तो घटका स्वरूप है और दूसरे घटोंमें रहनेवाले आकार आदि घटके पररूप हैं। वहां उसी घटमें ||
रहनेवाले आकार स्थूलता आदि जो घटका स्वरूप है उसकी अपेक्षा तो घट है और विवक्षित घटसे 8 |भिन्न घटोंमें रहनेवाले आकार स्थूलता आदि पररूपकी अपेक्षा घट नहीं है यदि स्वस्वरूपके समान १५५ | परस्वरूपकी अपेक्षा भी घटका होना माना जायगा तो स्वरूप पररूपका भेद तो रहेगा नहीं फिर विव
PROPORORRORSCISISRORSPECASTHAND
SMESGHORSCORRECIREMEGHALCHOCALEGREGARECRUGRAMMAR