Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
ECRBASHASTR
१०रा०
१७४
I BAISAIBEOSHREGREEK
रूप है । पररूपकी अपेक्षा नास्तित्वस्वरूप है । द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा नित्यत्व और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा अनित्यत्व स्वरूप है। किंतु यह वात नहीं कि जिसतरह स्वस्वरूपकी अपेक्षा आस्तित्व स्वरूप है उस तरह पररूपकी अपेक्षा भी आस्तित्व स्वरूप हो और पररूपकी अपेक्षा जिस तरह नास्तित्व स्वरूप
है उस तरह स्वस्वरूपकी अपेक्षा भी नास्तित्वस्वरूप हो अथवा जिस तरह द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा है नित्यत्व स्वरूप है उस तरह पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा भी नित्यत्वस्वरूप हो और जिस तरह पर्याया
र्थिक नयकी अपेक्षा अनित्यस्वरूप है उस तरह द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा भी अनित्यस्वरूप हो । इसलिये यह वात सिद्ध हो चुकी कि जिस तरह एक ही पुरुषमें पितापना पुत्रपना आदि अनेक धौंका रहना विरुद्ध नहीं माना जाता उस तरह एक भी घटमें अस्तित्व नास्तित्व आदि अनेक धर्मोंका रहना भी विरुद्ध नहीं माना जा सकता इस रीतिसे अनेकांत वादमें नय आदिकी अपेक्षा एक पदार्थमें अनेक विरुद्ध धर्मोंका होना जब विरोध नहीं कहा जा सकता तब संशय भी नहीं हो सकता फिर अनेकांत वाद संशयका कारण है यह कहना ही मिथ्या है । अथवा
___ सपक्षासपक्षापेक्षोपलक्षितसत्त्वासत्त्वादिभेदोपचितैकधर्मवहा ॥१२॥ जहांपर साध्यका संदेह होनेपर हेतु देखकर उसकी सिद्धि की जाय वह पक्ष कहा जाता है। जहां पर साध्य और साधनका निश्चय हो वह सपक्ष कहा जाता है और जहांपर साध्य और साधन दोनोंके
अभावका निश्चय रहे वह विपक्ष कहा जाता है जिस तरह इस पर्वतमें अग्नि है क्योंकि अविच्छिन्न ४ रूपसे घूमकी रेखा निकल रही है यहांपर पर्वत पक्ष है क्योंकि धूमरूप हेतुसे अग्निरूप साध्यकी सिद्धि
उसमें की जाती है। रसोई खाना सपक्ष है क्योंकि वहांपर अग्नि और धूमका होना प्रत्यक्ष सिद्ध है और
movment-2018 RSSIBEES