Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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क्षित एक घटस्वरूप ही सब घट हो जानेके कारण संसार में केवल एक घट ही कहना पडेगा तथा बहुत
से घटोंको घटसामान्य और किसी एक घटको घटविशेष कहा जाता है यह संसारमें व्यवहार है यदि 8 विवक्षित एक घटस्वरूप ही सब हो जायगे तो घटविशेषका ही व्यवहार होगा, घट सामान्यका व्यव.8
हार उठ जायगा। ___ अथवा-उसी विवक्षित एक घटमें पूर्वकालमें रहनेवाले स्थास कोश कुशूल पर्याय और उत्तरकालमें रहनेवाले कपाल आदि पर्याय पररूप हैं एवं उन पर्यायोंके बीच रहनेवाली घटपर्याय स्वस्वरूप है। वहां घटपर्यायरूप स्वस्वरूपकी अपेक्षा घट है क्योंकि घटपर्यायमें ही जल लाना आदिघटके कार्य घटके गुण
और घटका नाम देखनेमें आते हैं और कुशूल कपाल आदि पररूपकी अपेक्षा घट नहीं है क्योंकि. * कुशूल कपाल आदि पर्यायोंमें घटका कार्य आदि कोई वातं देखने में नहीं आती। यदि स्वास कोश 1 कुशूल कपाल आदि स्वरूपसे भी घटका होना माना जायगा तो घट अवस्थामें जिस तरह घटपर्याय ,
दीख पडती है उस तरह स्थाश कोश कपाल आदि पर्यायें भी देख पडनी चाहिये । कदाचित् कुशूल हूँ। हूँ और कपाल आदि अवस्थाओंमें भी घटका होना माना जायगा तो उसके उत्पन्न करने में जो प्रयत्न
किया जाता है वह न करना चाहिये क्योंकि घट हर एक पर्यायमें मौजूद है एवं उसके नाशके लिये प्रयत्न करना भी व्यर्थ है क्योंकि उत्तर पर्याय कपाळ आदिमें जब घटका रहना माना जायगा तब घट का नाश नहीं हो सकता।तथा जिस तरह कुशूल कपाल आदि परस्वरूपकी अपेक्षा घट नहीं है उस तरह घटपर्यायरूप स्वस्वरूपकी अपेक्षा भी घटका होना न माना जायगा तो घट अवस्थामें जो जल लाना आदि कार्य उससे होते हैं, वे न हो सकेंगे।