Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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है । विशेष-जिसतरह आमका फल अपने पकनेका काल पूरा कर पकती और गिर पडता है उसीर प्रकार जो कर्म अपनी स्थितिको पूराकर फल देकर खिर जाते हैं वह तो सविपाक निर्जरा है और हु भाषा जिसतरह कच्चा आम वीच हीमें पाल आदिके द्वारा पका दिया जाता है उसतरह जो कर्म स्थितिको पूरी विना ही किये तप विशेषसे वीचमें ही खिरा दिये जाते हैं वह अविपाक निर्जरा है । सविपाक निर्जरा प्रत्येक संसारी जीवके सदा काल हुआ करती है क्योंकि प्रतिसमय अनंते कर्मों का बंध होता है ॐ रहता है और स्थिति पूरी कर अनंते ही खिरते रहते हैं किंतु अविपाक निर्जरा यम नियम धारकों के ही होती है।
कृत्स्नकर्मवियोगलक्षणो मोक्षः॥२०॥ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्वारित्रकी प्रकृष्टता होनेपर ज्ञानावरण आदि कर्मों के प्रकृति स्थिति अनुभाग और प्रदेश इन चारोबंधोंको जो सर्वथा आत्मासे वियोग-नांश हो जाना है वह मोक्ष
है। मोक्षका अर्थ छूट जाना है । मोक्षके समान होनेसे इसे मोक्षतत्व कहा गया है क्योंकि जिसतरहबेडी 9 वा रस्सी आदिसे छुटकारा पा जानेपर स्वतंत्रतासे अभीष्ट स्थानमें जा सकनेके कारण पुरुष अपनेको । ॐ सुखी समझता है उसीप्रकार सम्यग्दर्शन आदिकी प्रकृष्टता होनेपर समस्त कर्मोंके नष्ट हो जानेके है ₹ कारण आत्मा स्वाधीन आत्यंतिक ज्ञान दर्शन और अनुपम सुखका अनुभव करता है ।
विशेष-मोह अज्ञान आदि विभाव परिणामोंके करनेवाले और ज्ञान दर्शन आदि आत्माके स्वभाव । गुणोंके घातक स्वभाववाले कार्माण पुद्गल स्कंधोंका जो आत्मासे सम्बन्ध होना है वह प्रकृतिबंध है और उसके ज्ञानावरण आदि भेद हैं। कोंमें आत्माके साथ रहनेकी हद पडनेको स्थितिबंध कहते हैं।
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