Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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| अनुपस्थित पदार्थों का होता है और अनुभवमें आता है इसलिये तीनों कालोंकी अपेक्षा अनुपस्थित १०० || को ही आगमद्रव्यनिक्षेपका विषय मानना ठीक है । केवल भविष्यत् पर्यायकी अपेक्षा अनुपस्थित ही | १३१ को नहीं।
राजवार्तिककारने जो आगमद्रव्यका उदाहरण दिया है वह उपलक्षणमात्र है। इसकी समानता || रखनेवाले अन्य भी आगमद्रव्य निक्षेपके उदाहरण समझ लेने चाहिये जिसतरह-जो पुरुष राजनीति Pil का जानकार है परन्तु जिस समय उसके विचारमें वा उसे काममें लाने में उपयुक्त नहीं आगे जाकर
उपयुक्त होगा उसे अभीसे राजा कह देना यह भविष्यत् कालकी अपेक्षा अनुपस्थित, आगमद्रव्यनिक्षेप ७ का विषय है । जो पुरुष राजनीतिक शास्त्रका जानकार है परन्तु उसके चितवन आदिमें वा उसे काम
|| में लाने पहिले ही उपयुक्त हो चुका इस समय अनुपयुक्त है उसे अब भी राजा कहना यह भूतकाल ॥६॥ की अपेक्षा अनुपस्थित आगम द्रव्य निक्षेपका विषय है तथा जो पुरुष राजनीतिक शास्त्रका जानकार
॥ है किंतु उसके चिंतवन आदिमें वा काममें लानेमें उपयुक्त हो रहा है अभी पूर्ण उपयुक्त नहीं हुआ | है उसे भी राजा कहना यह वर्तमानकी अपेक्षा अनुपस्थित आगमद्रव्य निक्षेपका विषय है । इसी तरह FI और भी यथाव्यवहारमूलक उदाहरण समझ लेने चाहिये।
नोआगम द्रव्य के तीनों भेदोंमें ज्ञायक शरीरका विषय तीनों कालोंकी अपेक्षा अनुपस्थित ही 8 ग्रंथकारोंने स्वयं वर्णन किया है और वह विस्तृतरूपसे ऊपर कह दिया जा चुका है। ज्ञाताके शरीरको 5 ज्ञाता मानना यह तो स्थापना निक्षेपका विषय है और आत्मामें होनेवाले परिणामोंको शरीरमें मान | कर भूत भविष्यत वर्तमान तीनों कालोंकी अपेक्षा अनुपस्थितको विषय करनेवाला द्रव्य निक्षेप है इस
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