Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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विशेष-भाव शब्दसे वर्तमान पर्यायका प्रहण है। द्रव्य निक्षेपमें भावकी प्रधानता है क्योंकि वहां 8
भविष्यत् आदिअनुपस्थित पर्यायोंको वर्तमान कालका पर्याय मानकर व्यवहार किया जाता है । स्थापना | १३९|| निक्षेपमें भी भावकी ही प्रधानता है क्योंकि वहां अतद्भावको तद्भाव माना जाता है अर्थात् जो पाच
नाथ आदि तीर्थकर हो चुके उनकी प्रतिमाओंको वर्तमानमें पार्श्वनाथ आदि ही कहना पडता है । नाम हा निक्षेपमें भी वर्तमानमें किसी मनुष्यको करोडीचंद वा हाथीसिंह आदि कहना यह भावकी ही प्रधानता
है परंतु यहां पर कुछ साक्षात् प्रधानता नहीं आपेक्षिक प्रधानता है क्योंकि करोडीचंद आदि आत्मका द्रव्यको पर्याय नहीं, पर्याय सरीखी लगनेवाली हैं इस रीतिसे भाव निक्षेपको प्रधान मान उसकी अपेक्षा
व्यतिक्रमसे इहां निक्षेपोंके क्रमकी सार्थकता वतलाई है तथा समस्त लोकका व्यवहार नाम पर निर्भर 8
है इसलिये चारों निक्षेपमें सबसे पहिले नामका उल्लेख है। विना नामके स्थापना सिद्ध नहीं हो सकती ॥ इसलिये नामके बाद स्थापनाका पाठ रक्खा है । नाम और स्थापना दोनों निक्षेप द्रव्यके आधीन हैं-- है। विना द्रव्यके नाम और स्थापना सिद्ध नहीं हो सकते इसलिये स्थापनाके वाद द्रव्य निक्षेपका उल्लेख
है। भाव द्रव्यकी ही पर्याय है । विनाद्रव्यके भाव हो नहीं सकताइसलिये पूर्व और उत्तर कालकी अपेक्षा
द्रव्यका पहिले और उसके बाद भावका उल्लेख किया है। इस रीतिसे यहां नामको प्रधान मान उसकी जा अपेक्षा अनुक्रमसे द्रव्यादि निक्षेपोंकी सार्थकता उपर वतलाई गई है। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि--
नामादिचतुष्टयाभावो विरोधात् ॥ १९॥ न वा सर्वेषां संव्यवहारं प्रत्यविरोधात् ॥२०॥ एक ही शब्दार्थ नाम स्थापना आदि चारों निक्षेप स्वरूप नहीं हो सकता क्योंकि जो नाम है वह
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