Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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नाम और लक्षण आदि पूर्वक कहे हुए जीवादि पदार्थों का निर्दोषरूपसे व्यवहार कैसे होता है ? Me|| यह बतलाने के लिये सूत्रकार सूत्रद्वारा उनके व्यवहारका उपाय बतलाते हैं
नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः॥५॥ अर्थ-नाम स्थापनाद्रव्य और भावके द्वारा जीवादि पदार्थों वा सम्यग्दर्शन आदिका व्यवहार होता है।
जिससे पदार्थ जाना जाय वा जो पदार्थको जनावे-सम्मुख लाकर उपस्थित करे वह नाम निक्षेप | है। जो पदार्थ दूसरे किसी पदार्थमें स्थापा जाय प्रतिनिधिरूपसे कहा जाय वह स्थापना निक्षेप है। आगामीकालमें जिसके द्वारा गुण प्राप्त किये जाय वा जो आगे जाकर प्राप्त करेगा वह द्रव्य है और ॥ जो पदार्थ वर्तमानमें जैसा हो उसका उसीरूपसे होना भाव है। यह नाम आदि निक्षेपोंका व्युत्पत्ति सिद्ध अर्थ है । 'नामस्थापनाद्रव्यभावतः' यहाँपर 'नाम च स्थापना च द्रव्यं च भावश्च नामस्थापनाद्रव्य भावाः, तैः, नामस्थापनाद्रव्यभावरिति नामस्थापनाद्रव्यभावतः यह इतरेतरयोग नामका द्वंद समास है। व्याकरणमें एक आद्यादि शब्दोंका गण माना है और उसके तृतीयांत वपंचम्यंत शब्दोंसे 'आद्यादिभ्यस्तसिः ४३६०। इस जैनेंद्र सूत्रसे तसि प्रत्यय होता है 'नामस्थापनाद्रव्यभाव' इस समासविशिष्ट एक पदका आधादिगणमें पाठ मानकर यहां तृतीयांत पदसे तसि प्रत्यय मानकर नामस्थापनाद्रव्यभावतः यह शब्द बना है अथवा 'दृश्यतेऽन्यतोऽपि' जिन शब्दोंसे तसि प्रत्ययका विधान है उनसे अन्य शब्दोंसे भी तसि प्रत्यय होता है यह भी व्याकरणका सिद्धान्त है इस सिद्धांतके अनुसार भी तृतीयांत नामस्थापनाद्रव्यभाव इस समस्त पदसे तसि प्रत्यय, करनेपर नामस्थापनाद्रव्यभावतः इस शब्दकी सिद्धि समझ लेनी चाहिये । जो व्यवहारस्वरूप हो वा जिसके द्वारा व्यवहार हो वह न्यास कहा जाता
BASEACHER-15REASRAEBAREIGAMEERS
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